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प्रतिक्रिया से कैसे बचें ? (२)
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का इतना अहसास होता है और सोचता है कि मेरा तो सारा प्रयत्न फालतू चला गया। बहुत सारे लोग दूसरे आदमी को उत्तेजना में लाना चाहते हैं, और सामने वाला उत्तेजना में नहीं आता है तो मन में इतनी खीज आती है, सोचते हैं, क्या आदमी है, कोरा मिट्टी का लोंदा है। दीर्घश्वास का प्रयोग, चैतन्य-केन्द्र प्रेक्षा का प्रयोग एक पुष्ट आलम्बन है। सामने क्रोध का प्रसंग आया, दर्शनकेन्द्र पर ध्यान किया या विशुद्धिकेन्द्र पर ध्यान केन्द्रित कर दिया तो क्रोध करना चाहेंगे तो भी नहीं कर पाएंगे। क्रोध का प्रसंग आया-श्वास का संयम कर लिया। एक मिनट के लिए, आधा मिनट के लिए श्वास को बंद कर लिया तो क्रोध क्या होता है, आपको पता ही नहीं चलेगा। ये सारे प्रयोग के आलम्बन हैं हमारे सामने। हम सैद्धांतिक और प्रयोगिक-दोनों आलम्बनों के सहारे इन प्रतिक्रियाओं से बच सकते हैं और अपने संतुलन को कायम रख सकते हैं।
कैसे सोचें, चिन्तन कैसे करें, इस विषय पर अहिंसात्मक दृष्टि से चर्चा की। यह मानसिक अहिंसा का विश्लेषण हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी है। हमने हिंसा और अहिंसा को इतना सीमित दायरा दे दिया कि जीव को मारना हिंसा और न मारना अहिंसा। बस, हिंसा भी समाप्त । इतनी छोटी धारणा बन गई, इतनी संकुचित सीमा बन गई कि विकास के लिए कोई अवकाश ही नहीं रहा ।
सामाजिक जीवन में, सामुदायिक जीवन में जितना अहिंसा का विकास होता है, समाज उतना ही उन्नत और विकासशील होता है और आज तक समाज ने जितनी प्रगति की है इसी के आधार पर की है।
यदि आज एक-एक पहलू पर विचार करना शुरू करें तो पता चलेगा कि आज अहिंसा का विकास नहीं होता तो दो आदमियों का साथ रहना कभी नहीं हो सकता। एक आदमी दूसरे आदमी को खाने दौड़ता तो न समाज बनता, न परिवार बनता। अहिंसा ने इतना विश्वास दिलाया कि कोई किसी को नहीं खाएगा, सब साथ में रह सकेंगे। तो समाज के निर्माण से लेकर आज की प्रगति तक हिंसा कम रही है और अहिंसा ज्यादा रही है। इसलिए अहिंसा इतनी विकसित हुई है। यह सारी बात मानसिक अहिंसा के स्तर पर ही समझी जा सकती है। ध्यान करने वाले व्यक्ति को इस सारी चर्चा में जाना बहुत आवश्यक है। इस चर्चा में गए बिना वह ध्यान का मूल्यांकन ही नहीं कर पाएगा। ध्यान के द्वारा हमारी मैत्री की भावना विकसित होती है, ध्यान के द्वारा हमारी प्रतिक्रिया-विरति की भावना विकसित होती है।
प्रेक्षा-ध्यान की उपसंपदा के पांच सूत्र हैं-भावक्रिया, प्रतिक्रिया-विरति,
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