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परिवेश का प्रभाव और हृदय-परिवर्तन
मैंने बिजली के प्रकाश को देखा है, पर बिजली को कभी नहीं देखा। किसी ने भी बिजली को नहीं देखा। जो वैज्ञानिक बिजली की परिभाषा कर रहा है, उसने भी बिजली को नहीं देखा। मैंने देखा करंट है, विद्युत् का प्रवाह है, स्विच ऑन किया, पर प्रकाश नहीं हुआ, क्योंकि बल्ब नहीं था। मैंने यह भी देखा, बल्ब है, स्वीच ऑन किया, फिर भी प्रकाश नहीं हुआ, क्योंकि विद्युत् का प्रवाह नहीं था। प्रकाश की निष्पत्ति के लिए दोनों चाहिए, करंट भी चाहिए और बल्ब भी चाहिए। अकेले से प्रकाश नहीं होता।
व्यक्तित्व की व्याख्या भी दो सन्दर्भो में की जा सकती है-चेतना और परिस्थिति। यदि परिस्थिति है और चेतना नहीं है या चेतना है और परिस्थिति नहीं तो व्यक्ति की व्याख्या नहीं की जा सकती। दोनों आवश्यक हैं। चेतना भी आवश्यक है और परिस्थिति भी आवश्यक है। परिस्थिति के बिना व्यक्तित्व को समझा नहीं जा सकता।
चेतना सूक्ष्म है। उसे कभी नहीं देखा। न मैंने देखा है और न आपने देखा है। चेतना की व्याख्या हम करते हैं, प्राचीन आचार्यों ने की है, पर देखा किसी ने नहीं।
परिस्थिति स्थूल है। उसको देखा है, मैंने भी देखा है और आपने भी देखा है। चेतना सूक्ष्म है, उसे नहीं पकड़ा जा सकता। परिस्थिति स्थूल है, उसे पकड़ा जा सकता है, पर दोनों के योग के बिना व्यक्तित्व की व्याख्या नहीं हो सकती।
परिवेश का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने तीन निष्कर्ष प्रस्तुत
किए
१. बच्चा जब गर्भ में आता है, तब से ही उस पर प्रभाव पड़ना प्रारम्भ हो जाता है।
२. वह जन्म लेता है और जैसे-जैसे उसकी अवस्था बढ़ती है, वैसे-वैसे प्रभाव गहरा होता चला जाता है।
३. एक ही समय में जन्म लेने वाले दो बालक भिन्न-भिन्न वातावरण में पलते हैं तो उनके व्यवहार में भी भिन्नता आ जाती है।
राजा सैर करने निकला। जंगल में पहुंच गया। कुछ आगे बढ़ा। चोरों की पल्ली आ गई। राजा चोरपल्ली के आगे से गुजरने लगा। एक घर के सामने एक पिंजरा टंगा हुआ था। उस पिंजरे में था, एक तोता। जैसे ही तोते
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