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परिवेश का प्रभाव और हृदय-परिवर्तन
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एक वातावरण ऐसा होता है, जिसमें पलने वाला अच्छा बालक भी बुरा बन जाता है, बिगड़ जाता है।
वातावरण का प्रभाव बहुत गहरा होता है। जो माता-पिता समझदार और चिन्तनशील होते हैं, वे अपने बच्चों को प्रारम्भ से ही अच्छे वातावरण में रखते हैं, जिससे कि बच्चे में अच्छाइयां जागे, गुण जागे और बुराइयां दूर हों। जो माता-पिता अपने संतान की उपेक्षा करते हैं, उनके प्रति ध्यान नहीं देते, उनको अच्छा वातावरण उपलब्ध नहीं करा पाते हैं, वे बच्चे बिगड़ जाते हैं। हम देखते हैं कि छोटे-छोटे बच्चे ऐसी भद्दी गालियां देने लग जाते हैं, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। एक बच्चा बहुत भद्दी गाली दे रहा था। किसी ने उसके पिता से पूछा। पिता ने कहा-क्या करूं ? यह सदा नौकरों के साथ रहता है, उनके संपर्क में रहता है। वे जो गालियां देते हैं, उन्हें यह बच्चा पकड़ लेता है और वैसे ही बोलने लग जाता है। इसी प्रकार अनेक बुराइयां बच्चों में आ जाती हैं।
बच्चा अनुकरणप्रिय होता है। प्रारम्भ में वह अनुकरण से ही सबकुछ सीखता है। वह सारी बुद्धि जब नकल से लेता है तो अबुद्धि कैसे छोड़ेगा ? उसे भी लेगा, क्योंकि उसका विवेक अभी इतना विकसित नहीं हो पाया है कि बुद्धि और अबुद्धि में वह अन्तर कर सके।
एक ही वंश-परम्परा में उत्पन्न दो शिशु भिन्न-भिन्न वातावरण के कारण भिन्न-भिन्न प्रकार के बन जाते हैं। उनमें इतनी भिन्नता हो जाती है कि उनके व्यवहारों को देखने पर यह अनुभव नहीं होता कि ये दोनों सगे भाई
राजा ने कब कल्पना की थी की दोनों तोते सगे भाई हैं, क्योंकि एक तोता लूटो, लूटो की रट लगा रहा है और दूसरा तोता स्वागतम्, स्वागतम् की रट लगा रहा है। दोनों की भाषागत भावना में आकाश-पाताल का अन्तर है।
इस अन्तर का कारण है वातावरण। वातावरण के कारण दोनों के मार्ग दो हो गए। एक चोरी के मार्ग पर चला गया और एक भक्ति के मार्ग पर चला गया।
परिवेश के ये तीनों निष्कर्ष परिवेश के अध्ययन से प्राप्त हुए हैं। प्रत्येक व्यक्ति के सामने तीन प्रकार के परिवेश या परिस्थितियां होती
१. बाहरी परिवेश। २. आंतरिक परिवेश। ३. अन्तर्तम का परिवेश ।
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