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परिस्थितिवाद और हृदय-परिवर्तन
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मनोविज्ञान ने जो अवचेतन मन की व्याख्या की, वह व्याख्या भारतीय दर्शनों के कर्मवाद के आधार पर की, सूक्ष्म चेतना और चित्त के आधार पर की। मनोविज्ञान में मन और चित्त-दोनों में भेद नहीं किया गया किन्तु जैन दर्शन में बहुत स्पष्ट भेद किया गया है कि मन भिन्न है और चित्त भिन्न है। मन अचेतन है और चित्त चेतन है। मन ऊपर का हिस्सा है, जो चित्त का स्पर्श पाकर चेतना जैसा प्रतीत होता है। चित्त हमारी भीतर की सारी चेतना का प्रतिनिधित्व करता है। अज्ञात मन, अवचेतन मन को चित्त कहा जा सकता है और ज्ञात मन को मन कहा जा सकता है।
राजा के मन में यह विरोध चल रहा था। एक मन कहता था कि आम की ओर जाऊं, दूसरा मन कहता था कि न जाऊं। यह एक बड़ा जटिल व्यवहार होता है, जहां दो विचार धाराएं व्यक्ति के मन में पैदा होती हैं। ये बहुत सताती हैं। एक मन एक बात कहता है, दूसरा मन दूसरी बात कहता है और तीसरा मन तीसरी बात कहता है। इस व्यवहार की व्याख्या केवल ज्ञात मन के आधार पर नहीं की जा सकती। राजा के अन्त:करण में अविरति थी, आकांक्षा थी। आकांक्षा की प्रेरणा हो रही थी कि अच्छा देखू, अच्छा सूंधूं और अच्छा खाऊं । यह प्रेरणा बहुत गहरे से आ रही थी। जो ज्ञात मन था वह निर्णय दे रहा था कि वैद्य ने मना किया है, आम नहीं खाना है तो फिर मुझे क्यों आम के पास जाना चाहिए ? देर तक संघर्ष चला, आखिर अज्ञात मन विजयी हुआ।
राजा के पैर आम के पेड़ों की ओर बढ़ चले। मंत्री ने कहा-'महाराज! आप कहां जा रहे हैं ? आपको वहां नहीं जाना है। अच्छा नहीं है वहां जाना। जिस गांव न जाना हो, उस गांव का रास्ता नहीं पूछना चाहिए, उस दिशा में हमारे कदम नहीं बढ़ने चाहिए। इधर चलें। बहुत सुन्दर वृक्ष हैं, इनकी ठण्डी छाया में बैठेंगे।'
राजा बोला-'मंत्री ! तुम भी अतिवाद कर रहे हो। बहुत लोग अतिवादी प्रवृत्ति में चले जाते हैं। यह अतिवाद नहीं होना चाहिए। मै कहां जा रहा हूं? क्या वैद्य ने यह भी मना किया है कि आम के पेड़ के नीचे भी नहीं जाना? यह तो मनाही नहीं, फिर मुझे क्यों रोक रहे हो ? मेरे कदम आगे बढ़ रहे हैं, तुम मुझे पीछे क्यों बुला रहे हो ?'
मंत्री का काम तो परामर्श देना था। राजा नहीं माना। आखिर स्वामी तो राजा था। मंत्री बेचारा क्या कर सकता था ? राजा गया और सघन आम्रवृक्ष के नीचे बैठ कर बोला-मंत्रीवर ! कैसा अच्छा लगता है ? तुम तो मुझे मना कर रहे थे। देखो, कितनी गहरी छाया है। दूसरे पेड़ों की इतनी
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