________________
कैसे सोचें ?
अपने आपको बचा लो। यह एक बहुत पुष्ट आलम्बन है और इस आलम्बन का प्रयोग किया जाए, अभ्यास किया जाए तो ऐसे प्रसंग में जो एक उत्तेजना का और आवेश का प्रसंग है, आदमी अपने आपको बहुत संतुलित रख सकता है। अपने संतुलन को खोने का उसके सामने कोई प्रसंग नहीं आता।
दूसरा प्रसंग है कोई आदमी किसी की निन्दा करता है तो यह स्वाभाविक है कि मन नाराज हो। प्रशंसा होती है तो मन राजी होता है, निन्दा होती है तो मन नाराज होता है। यह एक प्रतिक्रिया है। राजी होना भी प्रतिक्रिया है और नाराज होना भी प्रतिक्रिया है और यह मनुष्य का स्वभाव जैसा बन गया है। ऐसा स्वभाव बन गया है कि कहीं भी प्रशंसा की बात आती है, मन उत्फुल्ल हो जाता है। थोड़ी-सी निंदा की बात आती है, मन बिलकुल मुरझा जाता है। ऐसा मुरझाता है जैसे कभी यह फूल खिला ही न हो। यह तो स्वाभाविक बात हो गई। अब इस स्थिति से कैसे बचा जा सकता है ? इस प्रतिक्रिया से बचने का एक सुन्दर आलम्बन है
'नन्नस्य वयणा चोरा, नन्नस्य वयणा मुणी। अप्पा अप्पं वियाणाति।'
किसी के कहने पर कोई चोर नहीं बनता और किसी के कहने से कोई साधु नहीं बनता। आत्मा अपने आपको जानती है कि मैं चोर हूं या साहूकार हूं। यह एक पुष्ट आलम्बन है। यदि यह आलम्बन हृदयंगम हो जाए कि दूसरे के कहने से कोई चोर नहीं होता और दूसरे के कहने से कोई साहूकार नहीं होता, दूसरे के कहने से कोई अच्छा नहीं होता और दूसरे के कहने से कोई बुरा नहीं होता, तो प्रतिक्रिया से मुक्त हुआ जा सकता है।।
अपना आत्मविश्वास प्रबल हो, अपने प्रति अपना विश्वास, अपनी क्षमता के प्रति अपना विश्वास, अपने पुरुषार्थ और कर्तृत्व के प्रति अपना विश्वास हो तो दूसरे के कहने से कुछ भी नहीं होता। दूसरे लोग शायद नए आदमी को उठने देना ही नहीं चाहते होंगे। वर्तमान पीढ़ी हमेशा दूसरी पीढ़ी को आगे आने में बाधा डालती है। फिर चाहे वह पिता हो, चाहे माता । यह एक स्वभाव है। आज की पीढ़ी आने वाली पीढ़ी को कभी अच्छा स्वीकार नहीं करती। यही कहेंगे कि आज सब खराब हैं। यह आज की बात नहीं है, यह शाश्वत सत्य है, एक चिरंतन बात है। हमेशा पहली पीढ़ी ने अगली पीढ़ी को कमजोर बतलाया है।
पुरानी और नई पीढ़ी का संघर्ष बहुत पुराना है। पुराने व्यक्ति और पुरानी कृति को मान्यता प्राप्त होती है। नए व्यक्ति और नई कृति को मान्यता प्राप्त करनी होती है। मनुष्य स्वभाव से इतना उदार नहीं है कि वह सहज
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org