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प्रतिक्रिया से कैसे बचें ? (१)
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को तैयार हों तो एक लाख सेना की ताकत नहीं कि मरने वालों को मार सके। सेना तब मारती है जब सामने वाला भी मारने की मुद्रा में होता है। अगर मारने की मुद्रा में न हो, आक्रमण की स्थिति में न हो तो सेना भी निरस्त हो जाती है। उनकी मुद्रा भी बदल जाती है। किन्तु हमने अहिंसा को बिलकुल निर्मूल्य और निस्तेज बना दिया है। मैं मारने की और हिंसा की बात को भी छोड़ देता हूं, हमारे सामने जो सबसे भयंकर स्थिति है, वह है मानसिक हिंसा और अहिंसा की।
प्रेक्षा-ध्यान के सन्दर्भ में मैं मानसिक अहिंसा पर ही अधिक चर्चा करना पसंद करूंगा क्योंकि प्रेक्षा-ध्यान अहिंसा का एक प्रयोग है। हिंसा की वृत्तियां बदले, क्रूरता बदले, करुणा की चेतना जागे । हमारी निर्दयता ने आज अनेक समस्याएं पैदा की हैं। जितना भ्रष्टाचार है, जितनी बुराइयां हैं, जितनी अप्रामाणिकता है-ये सब क्रूरता के आधार पर पनप रहे हैं। यानी आदमी क्रूर न हो तो ऐसा हो नहीं सकता।
श्रीमद् रायचन्द्र महात्मा गांधी के गुरु-स्थानीय थे। बहुत बड़े साधक थे। जवाहरात का व्यापार करते थे। एक बार कोई सौदा किया हुआ था। भाव तेज हो गए। सौदा करने वाले को उसमें पचास हजार रुपयों का घाटा लग रहा था। उस जमाने की बात है। आज तो पचास हजार कुछ भी नहीं। उस जमाने में, आज से सत्तर वर्ष पहले, पचास हजार का कितना मूल्य था ? बेचारा घबरा गया। श्रीमद् रायचन्द्र को पता चला। उसको बुलाया। वह बड़ा घबराया हुआ था। श्रीमद् ने कहा-बोलो ! क्या बात है। उसके मन में तो वही बात थी। बोला-आप चिन्ता न करें, मैं आपका पूरा चुका दूंगा। श्रीमद् ने कहा-चुकाने की कोई बात ही नहीं। तुम्हारी स्थिति क्या है बताओ ? क्या कर रहे हो ? क्या चल रहा है ? उसने कहा कि मैं जानता हूं कि आपका रुपया मेरे ऊपर है, मेरे पर कर्ज है, मैं जब होंगे तब पूरा चुका दूंगा। आप अभी जल्दबाजी न करें। श्रीमद् ने कहा-अरे ! मैं तो यह बात ही नहीं कर रहा हूं। क्या रुक्का लाए हो अपना जिसमें अनुबन्ध लिखा हुआ है। उसने कहा-'रुक्का मेरे पास है, पर आप क्यों जल्दी करते हैं ? वह रुक्का मैं नहीं देना चाहता। जब मेरे पास होगा पूरा चुकाऊंगा।' श्रीमद् ने कहा-'मुझे दिखाओ तो सही।' बहुत कहा। उसने सोचा, ये मुझे फंसाना चाहते हैं। यह करेंगे, वह करेंगे, न जाने कितने विकल्प आए होंगे। उसने रुक्का श्रीमद् को
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