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कैसे सोचें ?
शब्द कोशों में दो-तीन लाख से ज्यादा शब्द नहीं हैं । शब्द करोड़ों में नहीं, केवल लाखों में हैं। लाख की संख्या में रहने वाले सीमित शब्द उस असीम सत्य को अथवा सान्त शब्द अनंत को अभिव्यक्ति कैसे दे सकेंगे ? कभी संभव नहीं ।
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कुछ लोग आत्मा-परमात्मा की चर्चा करते हैं, बड़े उलझ जाते हैं । हंसी आती है। आत्मा तक वह व्यक्ति कभी नहीं पहुंचता जो शब्द की परिभाषा से आत्मा को देखना चाहता है । परमात्मा तक वह व्यक्ति कभी नहीं पहुंच सकता जो पारिभाषिक शब्दावली में परमात्मा को व्याख्यायित करता है । शब्द जिसको छूता नहीं, शब्द जिसका स्पर्श नहीं कर सकता, वह शब्द उसका प्रतिनिधित्व कैसे करेगा ? जिस व्यक्ति का किसी राष्ट्र से सम्बन्ध नहीं और वह उसका प्रतिनिधि बन जाए, कितनी झूठी बात होगी ? कौन उसे मानेगा और वह कैसे उस राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करेगा । भाषा में कोई क्षमता नहीं कि वह सत्य का प्रतिनिधित्व कर सके । यह तो एक अन्धे आदमी की लकड़ी जैसी है । न देख पाने के कारण अंधा आदमी लकड़ी को टिका-टिका कर चलता है। क्या अंधे की लकड़ी को हम अधिक मूल्य दें । उसका जितना मूल्य है उतना ही उसे दें। यह ठीक है कि भाषा के बिना हमारे जीवन का संपर्क नहीं होता, सामाजिक संपर्क नहीं होता। हमारे सम्बन्ध नहीं होते । हमारा काम नहीं चलता। इसलिए भाषा को भी एक स्थान देना पड़ता है । पर भाषा की आखिर क्षमता कितनी है ? भाषा की क्षमता अधूरी है। एक बात कहता है आदमी । भाषा की ऐसी स्थिति होती है कि बहुत बार सुलझते- सुलझते आदमी उलझ जाता है । उलझाने में हमारे शब्द बहुत बड़े सहयोगी बनते हैं । पता नहीं चलता और आदमी उलझ जाता है । उस भाषा के सहारे हम कैसे परम सत्य की बात सोच सकते हैं? मुझे तो कभी-कभी बड़ा अटपटा लगता है कि सत्य, परम सत्य जैसे शब्द गढ़े गए, क्या यही हमारी मानसिक भ्रांति नहीं है? आत्मा के बारे में जो कहा जा रहा है, कौन कह रहा है? कौन बतला रहा है? आत्मा तो बोलती नहीं । आत्मा तो अपने आपको प्रकट करती नहीं । आत्मा तो गहरे में, गहरे में और गहरे में है । सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम है । फिर कौन अभिव्यक्ति दे रहा है ? एक बड़ा प्रश्न है ।
हर भाषा पर बहुत भरोसा न करें। मन पर भी बहुत भरोसा न करें। कुछ लोग आते हैं और कहते हैं, आत्मा के बारे में बातचीत करना चाहता हूं। मैं पूछता हूं- क्यों ? किसलिए ? वह कहता है, आत्मा को जानना चाहता हूं । कुछ आते हैं और कहते हैं कि आत्मा का दर्शन चाहता हूं। मैं बहुत सीधा उत्तर देता हूं कि आत्मा को जानना चाहते हो या आत्मा के बारे में
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