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कैसे सोचें ?
संबद्ध है, इतने में टाल देता है, 'चलो, दुनिया में ऐसा ही होता है ।' बात
समाप्त ।
एक भाई मेरे पास आकर बोला, 'मुझ पर हर बात का बड़ा प्रभाव होता है । कष्ट का अनुभव करता हूं। कोई भी बात हो जाती है तो सारे दिन वही बात दिमाग में चक्कर लगाती है। बड़ा परेशान हूं, क्या करूं ?' मैंने कहा- तुम एक सूत्र का आलम्बन लो, एक सूत्र का उपयोग करो । जो भी घटना घटे, तुम यही कहा करो, 'दुनिया में ऐसा ही होता है, यह तो दुनिया का स्वभाव है, यह नई बात है ? क्या आश्चर्य है ? न हो तो आश्चर्य मानना चाहिए, हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं ।
एक मित्र दूसरे मित्र को ठगे तो आश्चर्य होता है कि मेरे मित्र ने मुझे ठग लिया है। अरे ! तुमने सचाई को समझा ही नहीं, मित्र की प्रकृति को समझा ही नहीं । एक मित्र दूसरे मित्र को ठगे, यह क्या आश्चर्य है । यह तो दुनिया की प्रकृति है, यह तो दुनिया का स्वभाव है, बात समाप्त हो जाती है जब हम यह मान लेते हैं कि यह होता है, दुनिया में यह तो चलता है तो फिर कोई कठिनाई नहीं होती ।
प्रत्येक व्यक्ति के संवेदन में बहुत अन्तर होता है। यह संवेदन की भिन्नता है, ज्ञान की भिन्नता है और शरीरगत पर्यायों की भिन्नता है । जन्म, शैशव, यौवन, बुढ़ापा, मृत्यु और रोग-ये सब शरीरगत होते हैं, प्रत्येक होते हैं। एक व्यक्ति के शरीर में अपना शैशव, अपना यौवन, अपना बुढ़ापा, अपना जन्म, अपनी मौत होती है। ये सब बातें प्रत्येक में होती हैं, अपनी-अपनी होती हैं। यह सीमा हमारा शरीर कर रहा है । शरीर ने इन सारी सीमा रेखाओं को खींचा है। इनका निर्वाह शरीर कर रहा है ।
हमारे जीवन के दो पहलू बन जाते हैं एक वैयक्तिक और दूसरा सामाजिक पर हम उस दुनिया में जी रहे हैं जहा संक्रमण होता है, छूत की बीमारियां होती हैं। एक बीमारी होती है और वह बीमारी फैल जाती है, दूसरों पर भी आक्रमण कर देती है । विचारों का भी संक्रमण होता है। एक आदमी के मन में एक विचार उठता है । ऐसा होता है कि वही विचार एक साथ हजारों लोगों के मन में उठ जाता है। विचार भी संक्रमणशील हैं। रोग भी संक्रमणशील हैं। जब संक्रमण के सूत्र से हम जुड़े हुए हैं तो हम नहीं कह सकते कि हमारा व्यक्तित्व कोरा वैयक्तिक है । यदि केवल वैयक्तिक दृष्टि से हम चिन्तन करते हैं तो हमारा चिन्तन सही नहीं होता । यदि हम केवल सामाजिक दृष्टि से चिन्तन करते हैं तो भी हमारा चिन्तन सम्यक् नहीं होता । जीवन की दो प्रणालियां हैं- एक समाजवादी जीवन की प्रणाली और
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