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अपने बारे में अपना दृष्टिकोण (१)
दूसरी वैयक्तिक जीवन की प्रणाली । सामाजवादी प्रणाली का आग्रह है कि व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं है। व्यक्ति पुर्जा है, एक यंत्र है। उसका कोई स्वतंत्र मूल्य नहीं है। समाजवादी चिन्तन के लोग इस बात पर इतना अतिरिक्त भार दे रहे हैं कि व्यक्ति का व्यक्तित्व ही समाप्त होता चला जा रहा है । कोई मूल्य ही नहीं रह गया । कोई मूल्य नहीं, चाहे तब गोली मार दे, चाहे तब फांसी पर चढ़ा दे और चाहे तब उसे समाप्त कर दे । मात्र एक उपयोगिता रह गई कि मशीन ठीक काम दे रही है तो काम लें, काम नहीं दे रही है बाहर फेंक दें। ऐसा होता है जापान में। पहले ऐसा होता था कि जब मां-बाप बूढ़े हो जाते उन्हें जंगल में फेंक दिया जाता । बूढ़ा हो गया, अब काम का तो रहा नहीं । आदमी को तो वह चाहिए जो काम का हो। जो निकम्मा हो गया वह हमारे किस काम का । फिर वह चाहे मां हो या बाप । वर्षों तक यह परम्परा चली है जापान में । बूढ़े मां-बाप को, बूढ़े आदमियों को पुत्र स्वयं जंगल में फेंक आते थे । वे सड़ते, मर जाते। कितना विचित्र दृष्टिकोण होता है मनुष्य का । केवल स्वार्थ और स्वार्थ । यह सामाजिक दृष्टिकोण भी एकांगी दृष्टिकोण बन गया । दूसरी ओर वैयक्तिक दृष्टिकोण की प्रबलता है । उसमें आदमी अपनी ही बात सोचता है । अपने ही हित की बात सोचता है, अपने ही स्वार्थ की बात सोचता है । अपने से आगे दूसरे की बात सोचने की उसकी तैयारी नहीं है । नितान्त व्यक्तिवादी दृष्टिकोण और नितान्त समाजवादी दृष्टिकोण-ये दोनों दृष्टिकोण आज समूचे समाज को उलझाए हुए हैं और हमारी समस्याएं भी उनके साथ उलझी हुई हैं।
हम स्वस्थ चिन्तन की चर्चा करते हैं । हमें इन दोनों दृष्टियों का समन्वय करना होगा । व्यक्तिवादी और समाजवादी दृष्टिकोण का समन्वय किए बिना एक स्वस्थ जीवन प्रणाली का सूत्रपात नहीं किया जा सकता । वर्तमान की उलझनों को देखता हूं तो मुझे यही लगता है कि जिन देशों में यह समाजवादी प्रणाली प्रचलित है, वहां वैयक्तिक स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है । व्यक्ति के लिए तीन बातें बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं स्वतंत्रता, स्वावलम्बन और अपने पुरुषार्थ पर विश्वास । ये व्यक्तिगत जीवन के तीन बड़े सूत्र हैं। मैं इन्हें व्यक्तिगत जीवन के तीन बड़े अवदान मानता हूं। बड़ी देन है - स्वतंत्रता । आदमी जब स्वतंत्र नहीं होता तो फिर यन्त्र में और मनुष्य में कोई अन्तर नहीं लगता । रोटी के लिए, सुविधा के लिए, उपयोगिता के लिए कोई अपनी स्वतंत्रता बेच दे, उससे बड़ी दासता की मनोवृत्ति नहीं होती। हमारे समाज में दासों की परम्परा रही है। नौकर अलग होता है, दास अलग होता है । नौकर वेतन लेता है, काम देता है । वह स्थायी नहीं होता । मालिक चाहता है
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