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यदि तिलों में तेल है तो पीलने का साधन मिलने से तेल बाहर सभी नगर के पुरुष-स्त्रियाँ वहाँ देखने आये, परंतु सुलसा वहाँ आ जाता है दूसरे सब निमित्त कारण है। योग्यता स्वयं होनी चाहिये नहीं आयी। अंबड को ज्ञात हुआ कि कितनी बार पूरा नगर वहाँ आ - कहा भी गया है,
गया पर सुलसा नहीं आयी। "यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा तस्य शास्त्रं करोति किम् ॥"
मन में सोचा कि उसको जैन दर्शन में आग्रह ज्यादा है ऐसा
विचार कर चौथे दिन तीर्थंकर का रूप धारण कर समवसरण में बैठकर अर्थात् जिसमें अपनी बुद्धि का स्वयं का कोई प्रकाश ही नहीं
धर्मदेशना देने लगा। उस समय भी सुलसा नहीं आयी देखकर अपनी उसका शास्त्र भी क्या कर सकता है?
लब्धि को शंकायुक्त मान, अंबड सुलसा के घर गया-सुलसा ने आदर अत: अगर बाती में तैल होगा तो दिया जलेगा-रोशनी जरूर
सत्कार किया और उनके आने का कारण पूछा? अंबड ने महावीर होगी। आत्म सत्ता तो सिद्ध स्वरूप के समान है।
देव की कथित-धर्मपृच्छादि बात बताई। सुलसा को बहुत ही यह दृढ़ मान्यता सुलसा सती की थी।
हर्षोल्लास हुआ, अंबड ने सुलसा से कहा-आप के नगर के बाहर भगवान् महावीर देव के द्वारा वह जीवाजीव तत्त्वों को जानकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश पधारे थे-आप वहाँ क्यों नहीं गई थीं? निरंतर सत्पुरुषों का ही समागम करती थी। आत्मचिन्तन में निमग्न सुलसा ने उत्तर दिया-इसमें देखना क्या था? ये सभी पुद्गल थी, उसकी बराबरी कोई भाग्य से ही कर सके उसको अपने धर्म की की वाणी हैं। पद्गल के धर्म हैं। सुलसा ने कहा आत्म उपयोग को कठोर उपासना से विचलित करने में कोई भी समर्थ नहीं था। भूलकर अन्य पदार्थ में अशाश्वत होना क्या मिथ्यावाद नहीं है?
भगवान् महावीर देव को भी उसकी आत्मा में लीन होने का सम्यग्दृष्टि पदार्थ को दूषित करने व मलीन करनेवाला वह कार्य नहीं पूर्ण विश्वास था। आत्म श्रद्धा में शिथिल होने वाले कई लोगों को है? नेक बनने हेतु अनेकों सूक्तियों द्वारा मजबूत बनाती थी।
अंबड इस प्रकार सुलसा के शब्द सुनकर आश्चर्य युक्त बना। एक बार चंपानगरी के उद्यान में भगवान महावीर देव देशना सुलसा आत्मधर्म में पूर्णतया प्रवीण है, प्रीतिवाली है। दे रहे थे, उसी समय अंबड परिवाजक वहाँ आया, देशना सुनकर विशेष जानने हेतु अंबड ने फिर से प्रश्न किया सुलसा भले ही श्रावक बन गया। उस समय वह तापस के वेश में ही था। आप ब्रह्मा, विष्णु और महेश को देखने न जायं लेकिन तीर्थंकर के
एकबार भगवान् की वन्दना करके कहने लगा कि मैं राजगृही. दर्शन करने भी नहीं आईं? यह आप की बड़ी भूल है। नगरी जा रहा हूँ, मेरे योग्य कुछ आज्ञा हो तो फरमाइये । भगवान् ने सुलसा ने उत्तर दिया-अंबड ! परम कृपालु देवाधिदेव, उनका उसे आत्मधर्म में दृढ़ करने निमित्त कहा- हे अंबड यदि तुम राजगृही ___आगमन होता तो मेरे रोम-रोम में आनन्द छा जाता, खुशी के कारण जा रहे हो तो वहाँ नाग नाम के सारथि की पत्नी सुलसा श्राविका है मरा राम-राम खिल उठता मगर मरा एक भा राम खुशा स नहा भरा। उन्हें मेरी ओर से धर्मशद्धि पुछना और धर्मलाभ कहना तथा धर्म में इससे मेरी आत्मा में यह आभास हुआ कि देवाधिदेव का आगमन सावधान रहने को कहना।
नहीं हुआ है । देवाधिदेव तो यहाँ से काफी दूर चंपा नगरी में विराजमान
है और अपने क्षेत्र में एक ही होते हैं, दो नहीं होते हैं। अत: मुझे अंबड नतमस्तक होकर बात अंगीकार कर चलता चलता
पूर्णतया यह आभास हो गया कि हमारी नगरी के बाहर ज़रूर कोई राजगृही नगरी के समीप आया। अंबड को अनेकानेक सिद्धियाँ उत्पन्न
मायावी ढोंगी ढोंग मचाकर बैठा है, इसलिये मैं वहाँ तुर्शन हेतु नहीं हुई थी, विविध प्रकार के स्वरूप बना सके ऐसी लब्धियाँ उसके पास
गयी। थी, रास्ते में उसने विचार किया था कि सुलसा ऐसी कैसी दृढ़
अंबड ने पुन: समझाया कि हे सुलसा आपकी यह बड़ी भूल श्रद्धावाली है सो स्वयं भगवान् ने भी उसकी प्रशंसा की है, उसकी
है? भले ही तीर्थंकर न हो लेकिन धर्म की शोभा तो बढ़ती है न? दृढ़ता की मुझे परीक्षा करनी पड़ेगी।
सुलसा ने उत्तर दिया इस में तुम्हारी भी बड़ी भूल है, ऐसे झूठे इस प्रकार का विचार कर अंबड ने अपनी वैक्रियलब्धि के द्वारा
आडम्बरों से क्या जीव धर्म के प्रति रुचिवाले होते हैं ? सत्य वस्तु ब्रह्मा का रूप बनाया और बड़े आडम्बर के साथ शहर के बाहर आकर
को बताना ही अपना सच्चा धर्म है। आडम्बर व पाखण्ड रचाने से बैठ गया। इस प्रकार का नया चमत्कार देखकर हजारों की संख्या में
बेहतर सादगी एवं सरलता बतानी उचित होती है। नगर वासियों ने दर्शन का लाभ लिया लेकिन सुलसा वहाँ नहीं गयी।
अंबड ने सुलसा से कहा-आप का कहना यथार्थ है। ब्रह्मा, दूसरे दिन दूसरे दरवाजे भगवान् विष्णु का रूप धारण कर विष्णु और महेश एवं तीर्थंकर के रूप धारण किये तो पूरी नगरी के आडम्बर युक्त पड़ाव डाला, सभी नगर के पुरुष-स्त्रियाँ वहाँ देखने लोग दर्शनार्थ आये, यदि मैं अकेला ही साधारण आया होता तो कोई आये परंतु सुलसा वहाँ नहीं आयी।
भी पहिचान सकते नहीं। फिर आने की बात ही कैसे बनती? धर्म तीसरे दिन तीसरे द्वार पर अंबड ने भगवान शंकर का रूप के प्रति लोग प्रभावित कैसे होते? धारण कर आडम्बर युक्त पड़ाव डाला।
श्रीमद् जयंतसेनसूरि अभिनंदन ग्रंथ/वाचना
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करो धर्म आराधना, छोड़ो विषय विकार । जयन्तसेन सतर्क रह, नैया सुख से पार ॥
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