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शान्त किया, पानी को दाख-रस बनाया, अन्धों को आंखे दी आदि- है। जैन धर्म में 'अपरिग्रह' रीढ़ के समान है । मसीही धर्म और आदि । यह सब तथ्य उन के पूर्ण योग एवं निष्कलंक अवतार जैन धर्म दोनों में 'अपरिग्रह' को लेकर बहुत अधिक समानता है। होने के संकेत देते हैं । एलिशा और प्रभु यीशु मसीह के शिष्यों ने मैं विचार करता हूँ कि इस प्रत्यय ने जहाँ मसीहियों को आध्यात्मिक भी चमत्कार किये किन्तु वे सब परमेश्वर के अनुग्रह के कारण थे रूप से ऊँचा उठाया है वहीं दूसरी ओर संसार में उन्हें गरीब बना और यही मसीही योग और भारतीय योग में अन्तर दिखाई देता . रखा है । गरीबी, धनवान बनने से श्रेष्ठ है | धनवानों के विषय में
कहा गया है कि परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से जैन धर्म एवं मसीही धर्म में समानता :
ऊंट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है।
परम योग मानव जीवन को उठाने का साधन है, साध्य नहीं । इस जैन धर्म एवं मसीही धर्म में पहिली समानता यह है कि दोनों
हेतु जैन मतावलाम्बियों ने पांतजल योग सूत्रों को पूर्ण रूप से धर्म हैं जिसे मानव को धारण करने की शिक्षा दी जाती है | जैन
स्वीकार नहीं किया, न ही मसीहियों ने । जैसा कि आरम्भ में हम धर्म के अनुसार जैसे ही वस्तु का अपना धर्म है उसी प्रकार मानव
देख चुके हैं कि "शारीरिक-योगाभ्यास के भाव से ज्ञान का लाभ का अपना धर्म है. स्वभाव है कि वह अपने को जाने यह परमतत्व तो है परन्त शारीरिक लालसाओं को रोकने में इन से काछ भी लाभ है. तो मसीही धर्म में परमेश्वर का सान्निध्य परम तत्व है जिसे नहीं होता ।" दोनो धर्म, जैन और मसीह, में समानता यही है कि योग की क्रिया द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
दोनों शारीरिक योग के स्थान पर आत्म-योग को प्रधानता देते हैं। जैन धर्म में तपश्चर्या पर अधिक बल दिया जाता है क्योंकि जैन धर्म में कषायों से मुक्ति मिल जाना ही कैवल्य है और तपश्चर्या भी योग है। इस तपश्चर्या में कर्म भी निहित है। इसी इसीलिये वह दिन प्रतिदिन इस ओर अग्रसर होता रहता है और प्रकार मसीही धर्म में पापों को स्वीकार करना तपश्चर्या है । यहां
कर्मों के माध्यम से ईश्वर बन जाने की ओर, तीर्थंकर हो जाने की समानता इस बात में है कि जैन अनुयायी का विश्वास होता है कि
ओर प्रयास होता है। तपश्चर्या द्वारा वह कैवल्य प्राप्तकर सकता है | मसीही धर्म में भी जैन और मसीही धर्म दोनों आन्तरिक शुद्धि पर बल देते हैं । बिश्वास की महत्ता है। विश्वास की साधना है | बिश्वास से ही मसीही धर्म में विश्वास और पश्चात्ताप द्वारा आत्म शुद्धि है वहीं तपश्चर्या का उदय होता है।
दूसरी ओर जैन धर्म में संवर और निर्जरा का महत्व है । यहां भी जैन धर्म पंच महाव्रत का प्रतिपादन करता है । उसी प्रकार ।
हमें दोनो धर्मों में समानताः दृष्टिगोचर होती है। मसीही धर्म में प्रायश्चित्त के व्रत (प्रेरितों के काम २७:९), अठवारे जैनधर्म और मसीहीधर्म में अन्तर : के व्रत (मत्ती ९:१४) का विधान है | बाइबल बताता है कि मूसाने जैन धर्म के अनुयायी चौबीस तीर्थकंरों में विश्वास करते है। चालीस दिन का व्रत रखा था (१ राजा ३७:९) । प्रभु यीशु मसीह ऐसी मान्यता है कि अब आगे कोई तीर्थंकर नहीं होगा । मसीही ने भी चालीस दिन का व्रत रखा था (मसी ४:२, मरकुस १:१२- केवल प्रभ-यीश में विश्वास करते हैं और यह भी विश्वास करते हैं ३. लुभा ४:२) व्रत इस दृष्टि से रखा जाता है कि हम परमेश्वर कि इस संसार का अन्त होगा और प्रभ यीश मसीह न्याय के दिन का स्मरण करते रहे । व्रत रखना एक अभ्यास है । जैन धर्म में फिर आयेंगे और कर्मों के अनुसार समस्त व्यक्तियों का निर्णय जैसे पंच महाव्रतों का पालन करना अनिवार्य है । उसी तरह तप होगा । के अन्तर्गत एक मसीही को व्रत को साधन बनाते हुए मन फिराना अर्थात् पश्चात्ताप करना अनिवार्य है । मसीही धर्म में पश्चात्ताप
जैनधर्म के अनुयायी केवल पूर्वकृत कर्मों पर पश्चात्ताप अपने पापों से करता है क्योंकि पाप के द्वारा ही मृत्यु है । जैनधर्म
करता है, व्रत और तपस्याओं को मान्यता देता है किन्तु, मसीही में जहां त्रिरल के अन्तर्गत सम्यग् दर्शन सम्यग ज्ञान एवं सम्यग्
धर्म में केवल पूर्वकृत कर्मों से ही पश्चात्ताप नहीं हैं वरन समस्त चरित्र के अन्तर्गत बाय एवं आन्तरिक सभी बातों का विधान
पापों का प्रायश्चित किया जाता है । व्रत एवं तपस्याओं का जो उपस्थित है उसी प्रकार मसीही धर्म में विश्वास, प्रेम, नम्रता, सेवा
शरीर से सम्बन्धित है कोई मूल्य नहीं है। की भावना निहित है । जैन अनुयायी वैयावृत सेवा की चर्चा करते जैनधर्म एवं दर्शन ने अपने तर्कशास्त्र को विवेचना के द्वारा हैं वही मसीहियों ने मानव सेवा को प्रभु की सेवा के रूप में बहुत अधिक बढ़ाया किन्तु मसीही धर्म ने तर्कशास्त्र को इतना स्वीकार किया है । यही कारण है कि मसीही मिशनरियों ने अपने महत्व नहीं दिया । उसने मसीही धर्म को 'विश्वास, आशा, प्रेम' जीवन का उत्सर्ग कर, मानव की सेवाकर, कीर्तिमान स्थापित किये। की भित्ती पर खड़ा किया जिसकी प्रेरणा वह मसीही धर्म के हैं । भारत में स्कूलों की स्थापना, अस्पतालों की स्थापना, नर्सेस प्रवर्तक प्रभु यीशु मसीह से, जो निष्कलंक अवतार हैं, प्राप्त करता ट्रेनिंग केन्द्रों की स्थापना कर इस बात को बता दिया है, और है। अन्य जातियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया है । यह बात अलग है
उपसंहार :कि सेवा के साथ-साथ उन्होंने मसीही धर्म का प्रचार भी किया जिस के कारण से कई दरिद्रनारायणों ने मसीही धर्म को स्वीकार
जैन और मसीही, दोनों धर्मों कर जीवन में उन्होंने अपना स्थान बनाया है। मैं सोचता हूँ कि ने नीतिशास्त्र को महत्व दिया और मिशनरियों द्वारा धर्म परिवर्तन कर क्या पाया ? कुछ नहीं। हर मानव के व्यक्तिगत जीवन की ओर
भारतीय है और अपनी मिट्टी से जडा हआ है. उसके ध्यान देकर मानव-मूल्य को समझने जीवन में सद्गुण की बहुलता है जो अन्य धर्मावलम्बियों में में योगदान दिया है। 'दृष्टिगोचर नहीं होती ।' यम के अन्तर्गत 'अपरिग्रह' का प्रावधान
श्रीमद् जयन्तसेनसूरि अभिनन्दन ग्रंथ / विश्लेषण
मेकप करना छोडकर, चेकप करो जरूर । जयन्तसेन प्रबुध्द हो, गूंजे मंगल तूर ॥
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