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दूर होने में भी देर न लगेगी।
हृदय प्रफुल्लित हो उठा, पर उसकी वह प्रसन्नता क्षणिक साबित - कंगाल के पास करोड़ों का हीरा हो, पर वह उसे काँच का
हुई, क्योंकि अगले ही क्षण उसके हृदय में संशय के बीज अंकुरित टुकड़ा समझता हो या चमकदार पत्थर मानता हो तो उसकी
हो गये । वह सोचने लगा कि मेरे नाम इतने रुपये बैंक में कैसे हो दरिद्रता जानेवाली नहीं है. पर यदि वह उसकी सही कीमत जान ले सकते हैं। मन तो कभी जमा कराये ही नहीं | मेरा तो किसी तो दरिद्रता एक क्षण भी उसके पास टिक नहीं सकती, उसे विदा
बैंक में कोई खाता भी नहीं है । फिर भी उसने वह समाचार दुबारा होना ही होगा । इसीप्रकार यह आत्मा स्वयं भगवान होने पर भी
बारीकी से पढ़ा तो पाया कि वह नाम तो उसी का है, पिता के यह नहीं जानता कि मैं स्वयं भगवान हूँ । यही कारण है कि यह
नाम के स्थान पर भी उसी के पिता का नाम अंकित है, कुछ अनन्तकाल से अनन्त दुःख उठा रहा है । जिस दिन यह आत्मा
आशा जागृत हुई, किन्तु अगले क्षण ही उसे विचार आया कि हो यह जान लेगा कि मैं स्वयं भगवान ही हूँ, उस दिन उसके दुःख
सकता है. इसी नाम का कोई दूसरा व्यक्ति हो और सहज संयोग दूर होते देर न लगेगी।
से ही उसके पिता का नाम भी यही हो । इसप्रकार वह फिर
शंकाशील हो उठा। T इससे यह बात सहज सिद्ध होती है कि होने से भी अधिक महत्त्व जानकारी होने का है, ज्ञान होने का है | होने से क्या होता
इसप्रकार जानकर भी उसे प्रतीति नहीं हुई, इस बात का है ? होने को तो यह आत्मा अनादि से ज्ञानानन्द स्वभावी भगवान
विश्वास जागृत नहीं हुआ कि ये रुपये मेरे ही हैं । अतः जान लेने आत्मा ही है, पर इस बात की जानकारी न होने से, ज्ञान न होने
पर भी कोई लाभ नहीं हुआ । इससे सिद्ध होता है कि प्रतीति से ज्ञानानन्दस्वभावी भगवान होने का कोई लाभ इसे प्राप्त नहीं हो
बिना, विश्वास बिना जान लेने मात्र से भी कोई लाभ नहीं होता । रहा है । होने का तो वह रिक्शा चलानेवाला बालक भी गर्भश्रीमन्त
अतः ज्ञान से भी अधिक महत्व श्रद्धान का है, विश्वास का है,
वाला बालक मा राष्टियों की प्रतीति का है | है, जन्म से ही करोड़पति है, पर पता न होने से दो रोटियों की खातिर उसे रिक्शा चलाना पड़ रहा है । यही कारण है कि इसीप्रकार शास्त्रों में पढ़कर हम सब यह जान तो लेते हैं कि जिनागम में ज्ञान के गीत दिल खोलकर गाये हैं। कहा गया है कि आत्मा ही परमात्मा है (अप्पा सौ परमप्पा), पर अन्तर में यह "ज्ञान समान न आन जगत में सुख कौ कारण ।
विश्वास जागृत नहीं होता कि मैं स्वयं ही परमात्मस्वरूप हूँ,
परमात्मा हूँ, भगवान हूँ | यही कारण है कि यह बात जान लेने पर इह परमामृत जन्म-जरा मृतु रोग निवारण ।।'
भी कि मैं स्वयं परमात्मा हूँ, सम्यक्श्रद्धान बिना दुःख का अन्त इस जगत में ज्ञान के समान अन्य कोई भी पदार्थ सुख नहीं होता, चतुर्गतिभ्रमण समाप्त नहीं होता, सच्चे सुख की प्राप्ति देनेवाला नहीं है । यह ज्ञान जन्म, जरा और मृत्यु रूपी रोग को दूर नहीं होती। करने के लिए परमअमृत है, सर्वोत्कृष्ट औषधि है ।"
समाचार-पत्र में उक्त समाचार पढ़कर वह युवक अपने और भी देखिए -
साथियों को भी बताता है । उन्हें समाचार दिखाकर कहता है कि "जे पूरब शिव गये जाहि अरु आगे जैहें ।
'देखो, मैं करोड़पति हूँ । अब तुम मुझे गरीब रिक्शेवाला नहीं
समझना। - इसप्रकार कहकर वह अपना और अपने साथियों का सो सब महिमा ज्ञानतनी मुनि नाथ कहे हैं ॥२
मनोरंजन करता है, एकप्रकार से स्वयं अपनी हँसी उड़ाता है । आजतक जितने भी जीव अनन्त सुखी हुए हैं अर्थात् मोक्ष इसीप्रकार शास्त्रों में से पढ़-पढ़कर हम स्वयं भगवान हैं, दीनहीन गये हैं या जा रहे हैं अथवा भविष्य मे जावेंगे, वह सब ज्ञान का मनुष्य नहीं ।' इसप्रकार की आध्यात्मिक चर्चाओं द्वारा हम स्वयं ही प्रताप है - ऐसा मुनियों के नाथ जिनेन्द्र भगवान कहते हैं।" का और समाज का मनोरंजन तो करते हैं, पर सम्यक्श्रद्धान के सम्यग्ज्ञान की तो अनन्त महिमा है ही, पर सम्यग्दर्शन की
अभाव में भगवान होने का सही लाभ प्राप्त नहीं होता, आत्मानुभूति महिमा जिनागम में उससे भी अधिक बताई गई है, गाई गई है।
नहीं होती, सच्चे सुख की प्राप्ति नहीं होती, आकुलता समाप्त नहीं क्यों और कैसे?
इसप्रकार अज्ञानीजनों की आध्यात्मिक चर्चा भी आत्मानुभूति मानलो रिक्शा चलानेवाला वह करोड़पति बालक अब २५ के बिना, सम्यग्ज्ञान के बिना, सम्यश्रद्धान के बिना बौद्धिक वर्ष का युवक हो गया है । उसके नाम जमा करोड़ रुपयों की व्यायाम बनकर रह जाती है। अवधि समाप्त हो गई है, फिर भी कोई व्यक्ति बैंक से रुपये लेने नहीं आया । अतः बैंक ने समाचारपत्रों में सूचना प्रकाशित कराई
व समाचारपत्रों में प्रकाशित हो कि अमुक व्यक्ति के इतने रुपये बैंक में जमा हैं, वह एक माह के
जाने के उपरान्त भी जब कोई व्यक्ति भीतर नहीं आया तो लावारिस समझकर रुपये सरकारी खजाने में
पैसे लेने बैंक में नहीं आया तो जमा करा दिये जायेंगे।
बैंकवालों ने रेडियो स्टेशन से घोषणा
कराई । रेडियो स्टेशन को भारत में उस समाचार को उस नवयुवक ने भी पढ़ा और उसका
आकाशवाणी कहते हैं । अतः
आकाशवाणी हुई कि अमुक व्यक्ति पंडित दौलतरामःछहढाला, चतुर्थ ढाल, छन्द ४
के इतने रुपये बैंक में जमा हैं, वह पंडित दौलतरामःछहढाला, चतुर्थ ढाल, छन्द ५
एकमाह के भीतर ले जावे, अन्यथा
होती।
श्रीमद् जयन्तसेनसूरि अभिनन्दन ग्रंथ / विश्लेषण
(१६)
फूल बिछावत फूल है, बबूल से है शूल । जयन्तसेन यथा करो, फल वैसा मत भूल ||
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