Book Title: Jain Shasan 2002 2003 Book 15 Ank 01 to 21
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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24.RENCTC.
याप्रधान श्री कालिकाचार्यजी श्रीन शासन (नधर्मना प्रतापी पुरुषो)विशेषां वर्ष : १५.. ..1.२९-११-२००२ EXBा , जो अत्यंत ही कामुकथा। सरस्वती साध्वी के अद्भूत आ पहुँचे। उन्होंने सभी शक सामंतो को आश्वासन देते
पऔर लावण्य को देखकर गर्दभिल्लराजा एकदम मोहित हुए कहा 'तुम्हें यदि बचना है तो हिंदुस्तान पलो, मैं तुम्हें
गया। उसने अपने सैनिकों के द्वारा सरस्वती साध्वी का उज्जैन का राज्य दिला दूंगा।' अपहरण करा दिया और उसे अपने अंत:पुर में भिजवा दी। कालिकाचार्य की इस बात को सुनकर सभी सामंत
ज्योहि कालिकाचार्य को इस बात का पता चला राजा तैयार हो गए। सभी सामंतराजा कालिकाचार्य के ज्योहि एक बहिन के नाते नहीं, किंतु जैन शासन के एक साथ अपने अपने काफले को लेकर आगे बढ़ने लगे। स्तंभ समान साध्वीजी के शील के रक्षण के लिए वे सिंधु नदी को पार कर वे सौराष्ट्र के किनारे आए। वर्षाऋतु राजदरबार में पहुंच गए।
आ जाने से उन्हें वहां कुछ समय के लिए रुकना पडा। | गर्दभिल्लराजा को समझाते हुए उन्होंने कहा, 'यदि तत्पश्चात वहांसे आगे बढकर लाट देश की राजधानी भरुंच
जा ही भक्षक हो जायतोप्रजा का क्या हाल होगा? आप पहुँचे। वहां के शासक बलमित्र, भानुमित्रको साथ लेकर सरस्वती साध्वी को मुक्त कर दे।'
मालवदेश के सीमा तट पर आ गए। । आचार्य भगवंत ने अनेक युक्ति प्रयुक्तियों के द्वारा गर्दभिल्ल राजा को अपनी गर्दभी विद्या का
जा को समझाने की कोशिश की परंतु कामांध बने राजा अत्यधिक अभिमान था। गर्दभी विद्या की साधना करने पआचार्य भगवंत के शब्दों का कुछ भी प्रभाव नही पडा। पर वह विद्या गर्दभी के रुप में आती और किल्ले पर खडी । आचार्य भगवंतने महाजन, धर्मीजन तथा मंत्री आदि रहकर जोर से आवाज करती, जिसके फलर वरुप 5 मील राज्य के अधिकारियों को भी समझाने की कोशिश की। के भीतर रहे सभी लोग मर जाते। इस विद्या के अभिमान पंतु कामांध राजा के आगे कीसी की नचली।
के कारण गर्दभिल्ल ने अपनी ओर से कुछ भी तैयारी नहीं आचार्य भगवंत नेसोचा, शक्ति होते हुए अन्याय | की थी। दीसहन करना तो कायरता ही है।
इधर कालिकाचार्य ने 108 लक्ष्यवेधी बाणावलियों XBI उन्होने प्रतिज्ञाली 'यदि मैं धर्मभ्रष्ट राजा को पद्भ्रष्ट को योग्य स्थान पर नियुक्त कर दिया। उसगईभी विद्या ने
नकरुं तो संघ के प्रत्यनीक, शासन घातक और संयम जैसे ही अपना मुंह खोला, 108 बाणावा लयों ने एक विनाशक की जो गति हो, वह मेरी गति हो।'
साथ 108 बाण छोडकर उसके मुंह को भर रिया-परिणाम | गर्दभिल्ल राजा के सैन्यबल तथा विद्याशक्ति से पू. स्वरुप वह कुछ भी शब्दोच्चार नहीं कर सकी आखिर रुष्ट आचार्य भगवंत अच्छी तरह से परिचित थे। कुछ दिनों होकर उस गर्दभी ने गर्दभिल्ल राजा के ऊपर मठ-मूत्र किया
तक तो शुन्य मनष्क की तरह नगर में इधर-उधर घूमने और गुस्से में आकर पैरों से प्रहार कर अदृश्य हो गई। EX ली, तत्पश्चात वेष परिवर्तन कर कालिकाचार्य ने उज्जयिनी उसके बाद उन शकराजाओं ने गर्दभि न्ल की सेना * नारी छोड़ दी।
पर हमला किया। लीला मात्र से ही उन शव राजाओं ने x: I आसपास केराजाओंपर उन्होने अपनी नजर डाली, गर्दभिल्ल को परास्त कर दिया और उसे पकड़ कर कैद कर X वितु किसी में इतना मनोबल और द्रढनिश्चय नहीं था, जो | दिया। गर्दभिल्ल को आचार्य भगवंत के सामने प्रस्तुत X गाईभिल्ल को चुनौती दे सके। आखिर वे वहां से आगे किया गया।
बहते हुए सिंधु नदी के तट को पार कर हिन्द के बाहर गर्दभिल्ल का मुंह शर्म के मारे नीचे झुक गया था। ME ईशन पहुँचे। अपनी विद्या के बल से उन्होंने शकराजा के उसेपू. आचार्य भगवंत ने कहा, 'सती साध्वी पर अत्याचार X: छटे छोटे शाही सामंतो के साथ मैत्री का संबंध स्थापित करने का यह तो नाम मात्र का फल है, इसका पूरा फल तो दिया।
नरकगति में मिलेगा।' एक बार 96 शकसामंत, राज्य भय से धबरा गए।। वेशक लोग गर्दभिल्ल को मार डालन चाहते थे, कालिकाचार्य को ज्योहि इस बात का पता चला, वे वहां परंतु कालिकाचार्य ने दया कर उसे बंधन मुक्त किया।
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