Book Title: Jain Shasan 2002 2003 Book 15 Ank 01 to 21
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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ANCINEMANMOWGINNINGINNINGawanawNCINCONORNOONORMONINGNOUNCINIAC-ACMWWWWol | TEACHControconocoholaROUGHonotonovootonabataonotonahatamananel तलक के लिये बलिदान
શ્રી જૈન શાસન (જૈનધર્મના પ્રતાપી પુરષો) વિશેષાંક વર્ષ: ૧૫૦ અંક: ૮ ૦ તા. ૨૬-૧૧-૨૦૦૨ तिलक के लिये बलिदान
(एकप्रेरणादायी नाटक)
(लेखक : गणिश्री रत्नसेन विजयजी म.) (नेपथ्य में से)
(सभी प्रजाजन खडे हो जाते है और हाथ जोडकर विक्रम की 12वीं शताब्दी का समय है।
महाराजा को प्रणाम करते है) कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्यजी और अठारह देश (महाराजा अपनी राजगद्दी पर आसीन होते मंजीवदया का पालन करानेवाले कुमारपाल महाराजा का
है..मंत्रीश्वर ने भी अपना स्थान ग्रहण किय ।) जीवन-सूर्य अस्त हो चूका है..और इसके फलस्वरुप अजयपाल:- मंत्रीश्वर! राज्य की व्यवस्था किस गुजरात की धरा पर चारों ओर अंधकार छा गया है। अपने प्रकार चल रही है। सब ठीक ठाक है न? कहीं कोई प्राणप्यारे महाराजा को याद कर गुजरात की प्रजा करुण- शिकायत तो नहीं है ? क्रंदन कर रही है। चारों ओर शोक और विषाद का मंत्रीजी:-महाराजा! आपकी अर्स मकृपासेसब वातावरण है।
कुछ ठीकठाक चल रहा है। कहीं कोई शिकायत नहीं है। सम्राट् कुमारपाल को विषपान कराकर गुजरात की | राजन! आपकी तेजस्वी प्रतिभा को देखकर दुश्मन राजा धुरा को अपने हाथ में ले ली हैं,धर्मद्रोही अजयपाल ने।। तो दूम दबाकर भाग रहे है। (मंत्री के मुखसे अपनी आत्म
सत्ता को प्राप्त कर मदोन्मत्त बना अजयपाल, प्रशंसा सुनकर अजयपालखुश हो जाता है, कुमारपाल के द्वारा निर्मित जिनमंदिरो को ध्वस्त कर रहा द्वारपाल: महाराजाधिराज! राज-द्वार पर सेठ है..इतना ही नही,जिनेश्वर की आज्ञा के प्रतिक रुप केशर धर्मदास और धनदास उपस्थित हुए है। वे आपसे न्याय के तिलक को मिटाने के लिए भी तैयार हो चुका है। । मांगने केलिए आए है। आपकी आज्ञा होतो...।' | ऐसी विकट परिस्थिति में भी जिसके रोम रोम में | मंत्रीश्वर :- 'तुम जाओ और उन ोनों को राज जिनेश्वर की आज्ञा के प्रति पूर्ण समर्पण भाव रहा हुआ दरबार में उपस्थित करो! हमारे महाराजाप्रपा केन्याय के हैं..ऐसा कपर्दी मंत्री राज आज्ञा का प्रतिकार करके भी | लिए सदैव तत्पर है।' मौत' को भेटने के लिए तैयार हो चूका है।
(कुछ ही क्षणों बाद द्वारपाल के साथ सेठ धर्मदास । प्रस्तुत है आपके सामने एक छोटी सी नाटिका। और धनदास का आगमन होता है। राजद बार में प्रवेश एकऔर राजसता और दूसरी ओरधर्मसत्ता, आपभी देखिए करते ही वे दोनों महाराजा को हाथ जोडक प्रणाम करते किसका विजय होता है। (दृश्यपहला)
अजयपाल :- 'बोलो, आप लोगों का कैसे (राजदरबा अच्छी तरह से सजा हुआ है। प्रजाजन!
आगमन हुआ ? कोई शिकायत है क्या?' स जा के आगमन का इंतजारी कर रहे हैं.. और उसी समय
धनदास :- महाराजा! आज से डेड मास पहले त्रीजनों के साथ सम्बट अजयपाल का राजदरबार में प्रवेश
मैने धर्मदास सेठ को एक महिने के लिए पांच लाख रुपये होता है। उसी समय द्वारपाल छडी पुकारता है)
उधार दिए थे। उस समय मैंने करार किय था कि यदि
धर्मदाससेठ एक मास के भीतर ही पांचला वरुपएलौटा पारपाल: सोने की छडी, रुपे की मशाल, जरीयन का
देगा तो मैं उन रुपयों पर ब्याज नहीं लूंगा..और एकमास नामा, मोतीयन की माला, आजुसे बाजु से निगाह रखो,
से अधिक समय बीत गया तो मैं पांच लाख रुपए नहीं महेरबानप्रजापालक महाराजा पधार रहे है)
किंतु उसके कलेजे का सवा सेर मांसलूंगा।' आज उस w wwIONINNOWCONNOWONOONAL
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