Book Title: Jain Shasan 2002 2003 Book 15 Ank 01 to 21
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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युग प्रधान श्री कालिकाचार्यजी શ્રી જૈન શાસન (જૈનધર્મના પ્રતાપી પુરુષો) વિશેષાંક ૭ વર્ષ: ૧૫૦
युग प्रधान श्री कालिकाचार्यजी
| भागवती दीक्षा -
भारत देश की पवित्र
आर्यभूमि !
धारावास नगर ! वीरसिंह राजा और सुरसुंदरी रानी ! राजा अत्यंत ही न्यायप्रिय और प्रजा का हितैषी था ! अपने सुख-दुःख को गौण करके भी प्रजा के सुख-दुःख की उसे अधिक चिंता थी ।.... एक शुभ दिन शुभ मुहुर्त में सुरसुंदरी ने एक तेजस्वी पुत्र रत्न को जन्म दिया। नगर में चारों ओर खुशियाँ मनाई गई.. क्रमशः बालक का नाम किया गया कालक ।
પોલીસ પટેલમાંથી પલટાયેલાં, પ્રખર વ્યક્તિત્વના ધારક એવા શાસનના સમર્થ સેનાની : સકલાગમ રહસ્યવેદી : જ્યોતિષમાર્તંડ મહાપુરુષ પૂ. આચાર્યશ્રી વિજયદાનસૂરીશ્વરજી મહારાજ
पू. आत्भाराभल भडाराना समुहाये खेऽत्रित थर्धने श्री भवविनयक महाराजने आयार्यया३७ उखानो निर्णय सीधो खने पाटागमां मे प्रसंग उपायों ત્યારે શ્રી વીરવિજયજી મહારાજે સૌની ઇચ્છાને માન खायीने उपाध्यायपघ्नो स्वीअर अर्यो हतो. ५. खायार्य श्री કમલસૂરીશ્વરજી મહારાજની પાટને શોભાવતા પૂ. ઉપાધ્યાય શ્રી વીરવિજ્યજી મહારાજ સમર્થ મુનિવર્ય હતા. परंतु सं. १८७५मां तेखोश्री स्वर्गवासी जनतां खा पाट परंपरा पर श्री भवसूरीश्वर महाराने श्री
कुछ समय बाद राजरानी ने रुप रुप की अंबार
ऐसी तेजस्वी कन्या को छानसूरीश्वर महारान भने श्री बन्धिसूरीश्वर
મહારાજને સ્થાપિત કર્યા.
जन्म दिया जिसका नाम रखा या सरस्वती !
यौवन के प्रांगण में प्रवेश करने के साथ ही
राजकुमार कालक शस्त्र और शास्त्र कला में निपूण बन गया । सरस्वती ने भी स्त्रियों की सभी कलाएँ हांसिल
की।
कालक को
का
श्रीमह् विन्त्र्यप्रेमसूरीश्वर महाराज खने श्रीम६ विन्न्यरामचंद्रसूरीश्वर महाराज नेवा जे खागमोल रत्ननां घडवैया तरी श्री धानसूरीश्वरल भडाराभो नैनशासनने ने प्रधान छे तेनुं तो भूल न थायतेम નથી ! ઝીંઝુવાડાના વતની આ મહાપુરુષે ૨૨ વર્ષની વયે पू. उपाध्यायक वीरविन्न्यक महाराजना शिष्य जनीने, સંયમ સ્વીકારીને, જ્ઞાન-ધ્યાન અને જપ-તપની એવી તો (अनु. पाना नं. ८४५ ५२ )
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लेखक: गणिवर्यश्री रत्नसेन विजयजी
था।... एक दिन घोडे पर सवारी करते हुए वह नगर से दुर- सुदर क्षेत्र में पहुंच गया। एक उद्यान के पास उसने विश्राम लिया। भाग्ययोग से उस समय उसी उद्यान में सूरिजी म. धीर-गंभीर स्वर से धर्म | देशना दे रहे थे । पूज्य आचार्य भगवंत की मेघगंभीर ध्वनि के मधुर शब्द कालककुमार के कान तक
पहुंचे । उसके दिल में जिनवाणी श्रवण के प्रति एक आकर्षण पैदा हुआ.... और वह भी उस प्रवचन सभा में जाकर बैठ गया । पूज्य आचार्य भगवंत की भवनिस्तारिणी - वैराग्यवाहिनी धर्मदेशना
• ता. २१-११-२००२
८४४
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के वे मेघ गंभीर शब्द
कालक कुमार के अन्तर्मन को छू गए। पूज्य आचार्य | भगवंत की एक ही देशना
ने कुमार का हृदयपरिवर्तन कर दिया । अभी
तक उसके दिल में भौतिक सुख-समृद्धि का जो આર્ષ था.. वह आकर्षण तत्क्षण समाप्त हो
गया।
संसार के सभी भौतिक | सुख उसे असार व तुच्छ
प्रतीत होने लगे और उसका मन वैराग्य रंगसे रंजित हो
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