Book Title: Jain Shasan 2002 2003 Book 15 Ank 01 to 21
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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W WWWCOMWWWal Poorvaorvaown..Maratoannotatolattestate-HAR युग प्रधान श्री क लिकाचार्यजी श्रीन शासन (नधर्मना प्रतापी पुरुषो)विशेषis • वर्ष : १५. .ता. २६-११-२०२२ गया। बस, उसी समय उसनेत्याग धर्म को स्वीकार करने भाई की बात बहिनके गले उतर गई..और वह भी का द्रढ संकल्प कर लिया।
दीक्षा लेने के लिए तैयार हो गई। कुछसमय बाद कालकअपने घर लौटा। उसने दीक्षा एकशुभदिन कालकऔरसरस्वतीने मोह केबंधनों की अनुमति के लिए अपने
का परित्याग कर चारित्रधर्म माता-पिता को समझाया (मनु.८४४i)
स्वीकार कर लिया। किंतु मोहाधीन माता-पिता भीमसाधनारीसने शवीमायुगमा पर | कालक मुनि बने और इसप्रकार दीक्षा कीअनुमति विद्वान,यस्तारित्रपासनेमीम-अन्तगगना सरस्वती साध्वी बनी । कैसे दे सकते? | अनराधार तशा श्रीमवियानसरीश्वर महारानी दीक्षा अंगीकार करने के आखिर कालिक के नामसने मगहीवापागाईगया!.
बाद कालक मुनि रत्नत्रयी द्रढ वैराग्य के सामने उनके| तमोश्रीज्योतिषविषयनोसन्स भ्यासी की आराधना साधना में माता-पिता को झुकना पडा| समागमोना२७स्यनावतात. तेथी'समागम एकदमआतप्रात बन गए।
और एक दिन कालक|२६स्यवेहा'तरी सुप्रसिद्धबनेका पुरयपुरचनो भागवती दीक्षा अंगीकार| प्रभावोसोराबा!साधुसंस्था यारोटमा ती सतत पुरुषाथक
सततपुरुषार्थ के फलस्वरुप करने के लिए तैयार हो|त्यारे तमागे ६०-७०शिष्योन सनयु,मेवानी
|कालक मुनि अल्पकाल में गया।
સાક્ષી પૂરે છે કે કઠોર ચારિત્રપર્યાયના સાધક/આરાધકને ही श्रुतज्ञानकेपारगामी बन कालक की बहिनोवोशिष्यसमधायमोडीसंज्योभाभ
ग ए । उनकी विशिष्ट्र सरस्वती को जब पता चला કોઈપણની ભૂલ થાય તો એની સામે પુણ્યપ્રકોપ
योग्यता जानकर पूज्य कि मेरा भाई वीतराग प्रभु वानीपहारीमा उरना। अने पछी पार्छ
गुरुदेव ने उन्हे जैन शासन के बताए हुए त्याग मार्ग पर| सेटj४ वात्सल्य पक्षावना। सामहापुरुषेशानभने
का महान् आचार्यपद प्रदान X जाने के लिए सुसज्ज बना| शारित्रनां मेवांबी वाव्या,मेने विसावना।।'
किया । तब से वे है..वह अपने भाई के पास महा५२-श्रीमहविनयप्रेमसूरीश्वर महाराजासन
कालिकसूरिजी के नाम से जाकर बोली, 'भैय्या ! શ્રીમવિયરામચંદ્રસૂરીશ્વરજી મહારાજાના રૂપમાં આપણને
प्रख्यात हुए। तुम्हारे बिना मैं कैसे रह
| મળી આવ્યા! તે સમયે કોઈ પણ ચર્ચાસ્પદ બાબતમાં પૂ. पाऊंगी?'
દાનસૂરીશ્વરજી મહારાજનો બોલ પ્રમાણ ગણાતો. આટલી कालक ने कहा,
की शील रक्षा હદ સુધી તેઓશ્રીની પ્રતિષ્ઠા હતી તેના મૂળમાં તેમનું અગાધ “इस संसार में कौन
જ્ઞાન અને ઊંડીચારિત્રનિષ્ઠા હતાં. પાટડીજેવા નાનાં ગામને किसका है ' इस देह के
પોતાની સ્વર્ગારોહણભૂમિ દ્વારા ઐતિહાસિક બનાવી संबंध तो इस जीवन पर्यंत જનારા આ મહાત્માની તવારીખો નીચે પ્રમાણે છે:
समय का प्रवाह आगे * के हैं, जबकि आत्मा के
बढने लगा। ___न्म: सं. १८२४ जीजुवा, : सं. १८४६ | संबंध तो भव-भव में धोधा, मायार्यपह:सं. १८८१७ मा अनेस्वर्गवास:सं.
| एक शुभ दिन ग्रामान उपकारी है। मानव देह तो
ग्राम विचरण करते हुए ૧૯૯૨ પાટડી. शाश्वत अजरामर मोक्ष सुख
कालिकाचार्य अपने की प्रप्ति के लिए है, इस जीवन में ही मोक्ष के उपायभूत विशाल परिवार के साथ उज्जयिनी नगरी में पधारें। उस
ज्ञान-दर्शन और चारित्र की आराधना-साधना हो सकती है समय उनकी बहिन साध्वी सरस्वती भी अपनी गुरुणी वे X जिसे सच्चेजात्महित की चाह हैं, उसे संसार के क्षणिक साथ उज्जयिनी में ही थी। सुखों का त्याग कर देना चाहिये।
उस समय अवंतिदेश में गर्दभिल्ल राजा का शासन
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