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और वह शैली एवं मार्ग किस प्रकार असुविधाओं से खाली पाया जा सकता है जिसका विवेचन मैंने स्थल स्थल पर दिया है को वे मनन, अनुशीलन कर अपने श्रम, समय और पैसे की पर्याप्त बचत कर सकते हैं। ___ आचार्यदेवने मुझको यह कार्य देकर जो मेरा मान और अनुभव बढ़ाया है, मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ और उसके लिये आपका अमर आभारी रहूँगा। मुनि श्रीविद्याविजयजी साहब तथा सागरविजयजी का भी इस पुस्तक में अनेक मांति से श्रम मिला हुआ है, वे भी अनेक धन्यवाद के पात्र हैं।
महावीरजयन्ती ) श्रीवर्धमान जैन संपादकचैत्र शु. १३ बुधवार इ बोर्डिंग हाउस दौलतसिंह लोड़ा जैन विक्रम सं० २००५ ) सुमेरपुर(मारवाड) [ 'अरविन्द' बी. ए.
"Aho Shrut Gyanam"