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( १५ ) लग जाता है और इसके उपरान्त चित्त को कितनी बैचेनी और पीड़ा होती है, मस्तिष्क में कैसा धक्का लगता है-यह या तो वे जानते हैं जो अनुभवी हैं, या वे जिनकी कभी कुंजियाँ गुम गई हो, जहाँ सैकड़ो तालों की कुंजियाँ हों ही नहीं या गुभ गई हों, फिर वहाँ तो व्याकुलता का पार ही नहीं रहता । अनुक्रमणिकाओं के बिना ऐसी ऐतिहासिक पुस्तकें अकारण झंझट हो जाती हैं । लेखक या संपादक अनुक्रमणिकायें बना कर पाठकों को एक अद्भुत सुविधा तो प्रदान करते ही है, साथ में पुस्तक की उपयोगिता भी अनन्त बढ़ जाती है । इस पर--सुविधा के अतिरिक्त लेखक तथा संपादक को अनुक्रमणिकामें विनिर्मित करते समय लेखों में स्थान तथा आचार्य और पुरुषों के नामों में, वर्ष, माह, तिथि और दिनों में, जाति, गोत्र, संप्रदाय, गच्छ, सन्तानीय, शाखा, प्रशाखा, आचार्य और पुरुषों की सन्तति की परम्पराओं में जो त्रुटियाँ नेत्रदोष के कारण लेखों की प्रतिलिपि करते समय आ जाती हैं, अथवा मूल लेखों में वर्षा, आतप, भूकंप, जैसे प्रकृति के सगों के कारण शीर्णता और भग्नता, अधिक काल व्यतीत हो जाने के कारण जीर्णता, और विधर्मी आततायियों के दुष्प्रहारों के कारण भन्न होने से विकृति, और अस्पष्टता आ जाती है, वे पूर्ण समान अथवा कुछ अंशों में मिलनेवाले लेखों के परस्पर मिलान से अत्यधिक दूर हो जाती हैं । लेखक का श्रम सफल हो
"Aho Shrut Gyanam"