Book Title: Jain Itihas
Author(s): Kulchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 12
________________ चरित्र त्रिषष्टिशलाका पुरुष आदि ग्रन्थों से जानें । तीर्थकर परमात्मा श्री महावीर स्वामी इनमें चरम तीर्थपति श्री महावीर स्वामी हमारे समीप के उपकारी है क्योंकि हमें सौभाग्य से इन्हीं का धर्मशासन प्राप्त हुआ है । अतः हम इन्हीं से इतिहास का प्रारम्भ करेंगे। তীত मगध देश के क्षत्रियकुण्ड नगर में सिद्धार्थ राजा की रानी त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि से चौदह महास्वप्नों से सूचित महावीर स्वामी का जन्म विक्रमसंवत् पूर्व ५४३ एवं ईसवी सन् पूर्व ५९९ वर्ष में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को हुआ । छप्पन दिक्कुमारी, ६४ इन्द्र, सिद्धार्थ राजा और प्रजा ने जन्मोत्सव किया। प्रभु का नाम वर्धमान रखा गया । विवाह एवं परिवार वर्धमान ने युवावस्था में यशोदा नाम की राजपुत्री से शादी की । उससे प्रियदर्शना नाम की पुत्री हुई, जो जमालि नाम के राजपुत्र से ब्याही गई। उससे एक पुत्री का जन्म हुआ जो भगवान् की दोहित्री कहलाई । उसके दो नाम थे- अणोज्जा (अनवद्या) और शेषवती। माता-पिता का स्वर्गवास अट्ठाईस वर्ष की उम्र में माता-पिता अनशन करके स्वर्गवासी हुए। प्रभु बिरागी होने पर भी अपने बड़े भाई नन्दिवर्धन महाराजा के आग्रह से दो साल और संसार में रहे । इसी बीरागी अवस्था की मूर्ति सुवर्णकार कुमारनन्दि के जीव व्यन्तर देव ने श्रेष्ठ जाति के चन्दन से बनाई जो कुछ समय तक सिन्ध के वीतभयनगर में राजा उदायी और रानी प्रभावती द्वारा पूजी गई । बाद में कपट से राजा चण्डप्रद्योत इस प्रतिमा को अवन्ती ले गया। वहाँ सदियों तक जीवित स्वामी के नाम से पूजी गई । दीक्षा ____तीस वर्ष की उम्र में मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी को संसार त्याग कर स्वयं ने दीक्षा ली। भगवान् और उनके सम्बन्धियों के नाम भगवान् के तीन नाम थे (१) माता-पिता का दिया हुआ 'वर्धमान कुमार', (२) देवों की सभा में दिया हुआ 'महावीर' और (३) तपस्या आदि की स्वाभाविक शक्ति से वे 'श्रमण' कहलाये।

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