Book Title: Jain Itihas
Author(s): Kulchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 10
________________ जैन इतिहास भूतकाल की घटनाओं के संग्रह को इतिहास कहते हैं। इतिहास अवश्य जानना चाहिए । इतिहास से संबन्धित महापुरुषों के आदर्श जीवन से हमारी बुद्धि भी सुन्दर जीवन के प्रति स्थिर बनती है । स्व और पर का हित करने के लिए हम उत्साहित बनते हैं और आदर्श जीवन-पथ पर अग्रसर होते विश्व अनादि है विश्व अर्थात् चराचर जगत् अनादि है । जो कोई शंका करते है कि विश्व का निर्माण ईश्वर ने किया, तब अनादि कैसे ? उनकी इस शंका के समाधान हेतु निम्न बातें विचारणीय है - जगत-कर्ता ईश्वर का खण्डन (१) पुण्य-पाप से रहित ईश्वर शरीर को धारण नहीं कर सकता है और शरीर के बिना जगत्-सर्जन रूप कार्य असंभव है। इतना ही नहीं, किन्तु शरीर न होने से उनके मुँह भी न होगा और बिना मुख के वह उपदेश आदि भी नहीं दे सकता है । तो वह ईश्वर कैसे कहलायेगा? (२) ईश्वर कृतार्थ होने से जगत्-सर्जन का उसे कोई प्रयोजन भी नहीं है। (३) स्वयं को कोई प्रयोजन न होने पर भी किसी दूसरे की आज्ञा से ईश्वर को जगत् का सर्जन करना पडे, यह बात भी उचित नहीं है, क्योंकि ईश्वर स्वतंत्र है, वह किसी के आधीन नहीं है। (४) प्रयोजन न होने पर भी लीला अर्थात् खेल के लिए जगत्-सर्जन की प्रवृत्ति करे तो उस ईश्वर के लिए बालक की तरह रागी अर्थात् खिलवाडप्रिय होने की आपत्ति आती है । (५) ईश्वर वीतरागी होने पर भी दया से प्रेरित होकर यदि जगत्-सर्जन की प्रवृत्ति करता तो पूरे जगत् को सुखी बनाता । दुःख, दरिद्रतादि से बेचैन संसार के सर्जक ईश्वर को दयालु भी नहीं कह सकते हैं । (१)

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