Book Title: Jain Itihas
Author(s): Kulchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 8
________________ सम्पादकीय इतिहास अतीत का दर्पण है। यदि उसका प्रामाणिक पूर्वक निष्पक्ष भाव से निर्माण किया जाय तो उससे प्राचीन काल के समाज का सही प्रतिबिम्ब वर्तमान में देखा जा सकता है। उससे ज्ञान की वृद्धि होती है, साथ ही भविष्य-निर्माण की भी प्रेरणा मिलती है। हम अपने पूर्वज महापुरुषों के उदात्त चरित्र से गौरव अनुभव करते हैं और उनके अनुकरण की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। धार्मिक महान् पुरुषों से तो विशेष प्रेरणा मिलती है। उनका आदर्श चरित्र हमें साहस, धैर्य और गति प्रदान करता है। यह इतिहास की सार्थकता जैसे लौकिक-व्यवहारिक शिक्षा बालकों और नवयुवक को देनादिलाना अनिवार्य समझा जाता है, इसी प्रकार इतिहास और उसमें भी धार्मिक इतिहास के अध्ययन को भी अनिवार्य समझना चाहिए । लौकिक जीवन में जैसे व्यवहारिक शिक्षा उपयोगी है, उसी प्रकार आध्यात्मिक जीवन के निर्माण के लिए धार्मिक शिक्षण भी अनिवार्य रूप में उपयोगी है। ____ प्रसन्नता है कि विद्वान् वैराग्यवारिधि आचार्य श्री कुलचन्द्रसूरिश्वरजी म.साहेब ने इस ओर विशेष ध्यान ही नहीं दिया अपितु बालजनों के बोधार्थ 'जैन इतिहास' नामक इस पुस्तक की रचना भी की। निस्सन्देह यह संक्षिप्त पुस्तक अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी- छात्रों के लिए ... भी और अन्य जनों के लिए भी। अतएव संघ इस रचना के लिए आचार्यश्री का अत्यन्त आभारी है । आप संयमसाधना के साथ साथ साहित्य की उपासना में भी निरत रहते हैं। आपकी अनेक महत्वपूर्ण रचनाएँ इससे पूर्व भी प्रकाशित हो चुकी हैं । आशा है समाज इस रचना से लाभ उठाएगा और आचार्यश्री के इस कठिन श्रम को सार्थक करेगा। -सम्पादक

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