Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे
चरमकांडकद्विचरमफाळिपयंतमु गुणसंक्रमणभागहारमैयक्कुं। चरमफालियोल सव्वंसंक्रमणभागहारमक्कं ॥ अनंतरं सर्वसंक्रमणमुळ्ळ प्रकृतिगळं पेपरु :
तिरिएयारुव्वेलण पयडी संजलणलोहसम्ममिस्सूणा ।
मोहा थोणतिगं च य बावण्णे सव्यसंकमणं ।।४१७|| तिर्यगेकादशोद्वेल्लनप्रकृतयः संज्वलनलोभसम्यक्त्वमिश्रोना मोहाः स्त्यानगृद्धित्रिकं च च द्विपंचाशत्स सर्वसक्रमणं ॥
___ मुंपळद तिर्यगेकादशप्रकृतिगळु मुद्वेल्लनप्रकृतिगळु पदिमूरूं। संज्वलनलोभसम्यक्त्वप्रकतिमिश्रप्रकृतिळिदं विहोनमप्प पंचविंशति मोहनीयप्रकृतिगर्छ स्त्यानगृद्धि त्रयमुमें बो द्वापंचाशत्प्र१० कृतिगळोळु सर्वसंक्रमणमुटु । संदृष्टि
|ति | उ मो| थि | कूडि |
११ |१३|२५| ३। ५२ । अनंतरं प्रकृतिगळगे संक्रमणनियममं पेळ्दपरु
उगुदाल तीससत्तयवीसे एक्केक्कबारतिचउक्के ।
इगिचदुदुगतिगतिगचदुपणदुगदुगतिण्णि संकमणा ॥४१८॥
एकान्नचत्वारिंशस्त्रिंशत्सप्तविंशतावेकैक द्वादशत्रिचतुष्के । एक चतुर्दिकत्रिकत्रिकचतुःपंच १५ द्विक द्विक त्रीणि संक्रमणानि ॥
णायामपूर्वकरणपरिणामान्मिथ्यात्वचरमकांडकद्विचरमकालिपर्यंतं च गुणसंक्रमणं स्यात् । चरमफाली सर्वसंक्रमणं स्यात् ॥४१६॥ ताः सर्वसंक्रमणप्रकृतीराह
प्रागुक्ततिर्यगकादशोद्वेल्लनत्रयोदशसंज्वलनलोभसम्यक्त्वमिथवजितमोहनीयानि स्थानगद्धित्रयं चेति द्वापंचाशत्प्रकृतिषु सर्वसंक्रमणं स्यात् ॥४१७॥ अथ प्रकृतीनां संक्रमणनियममाह२० क्षपणाके विषयमें अपूर्वकरण परिणामसे मिथ्यात्वके अन्तिम काण्डककी द्विवरम फालि पर्यन्त गुणसंक्रमण होता है और अन्तिम फालीमें सर्वसंक्रमण होता है ।।४५६।।
आगे सर्वसंक्रमण रूप प्रकृतियोंको कहते हैं
पूर्वोक्त तिर्यक् एकादश, उद्वेलन प्रकृति १३, संज्वलन लोभ सम्यक्त्व मिश्रके बिना मोहनीयकी पच्चीस प्रकृतियाँ और स्त्यानगृद्धि आदि तीन इन बावन प्रकृतियोंमें सर्वसंक्रमण २५ होता है ॥४१७॥
आगे प्रकृतियोंके संक्रमणका नियम कहते हैं
१. ब मिश्रोवमो।
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