Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे परिणामंगळु निलुत्तं विरलु प्रवत्तिसुगुमप्पुरिदं विध्यातसंक्रममें बुदक्कुं। बंधप्रकृतिगळ्ग स्वकबंधसंभवविषयवोलु आउदोंदु प्रदेशसंक्रमदधःप्रवृत्तसंक्रमणमें बुदक्कु। प्रतिसमयमसंख्येयगुणश्रेणिक्रमदिवमाउदोंदु प्रदेशसंक्रमणमदुगुणसंक्रमण बुदक्कं । चरमकांडकचरमफाळिय सर्वप्रदेशाग्रक्के आउदोंदु संक्रमणमदु सर्वसंक्रमणमें बुदक्कुं॥
अनंतरं सर्वसंक्रमणमनुळळ प्रकृतिगळं मुंदे पेपरल्लि तिर्यगेकादशप्रकृतिगळेदु पेन्दपरदु कारणमागि या तिर्यगेकादश प्रकृतिगळावावु बोडे पेळ्दपरु ॥
तिरियदु जाइचउक्कं आदावुज्जोवथावरं सुहमं ।
साहारणं च एदे तिरियेयारं मुणेदव्वा ॥४१४॥ तिर्यग्द्वयं जातिचतुष्कमातपोद्योतस्थावराः सूक्ष्मः। साधारणं चैतास्तिय॑गेकादश १० मंतव्याः ॥
तिर्यग्द्वयमुमोदलजातिचतुष्कममातपमुमुद्योतमुस्यावरमुसूक्ष्म, साधारणशरीरमुबी पनों दुं प्रकृतिग तिर्यग्गतियोळल्लवितरगतियोठ्वयमिल्लप्पुरिदं तिय्यंगेकादश में वितन्वर्थ संजयकुं॥
अनंतरं उद्वेल्लनप्रकृतिगळयाउर्व दोडे पेळ्दपरु ।
१५ कस्य जीवस्य स्थित्यनुभागकांडक-गुणश्रेण्यादिपरिणामेष्वतीतेषु प्रवर्तनाद्विध्यातसंक्रमणं नाम । बंधप्रकृतीनां
स्वबंधसंभवविषये यः प्रदेशसंक्रमः तदधःप्रवृत्तसंक्रमणं नाम । प्रतिसमयसंख्येयगुणश्रेणिक्रमेण यत्प्रदेशसंक्रमणं तद् गुणसंक्रमणं नाम । चरमकांडकचरमफाले: सर्वप्रदेशाग्रस्य यत्संक्रमणं तत्सर्वसंक्रमणं नाम ॥४१३॥ सर्वसंक्रमणप्रकृतिस्थतिर्यगेकादशमाह
तिर्यग्द्वयमाद्यजाति चतुष्कमातपः उद्योतः स्थावरः सूक्ष्मं साधारणं चेत्येतो एकादश तिर्यक्ष्वेवोदयात्तिर्य२० रोकादश इति संज्ञाः स्युः ॥४१४॥ अयोद्वेल्लनप्रकृतयः का: ? इति चेदाह
परिणमना उद्वेलन संक्रमण है । मन्द विशुद्धिवाले जीवके स्थिति और अनुभागको घटानेरूप काण्डक अथवा गुणश्रेणि आदि परिणामोंके होनेके बाद जो होता है वह विध्यात संक्रमण है। बन्धरूप प्रकृतियोंके परमाणुओंका अपने बन्धके विषय में संभवती प्रकृतियोंमें जो
संक्रमण होना है उसे अधःप्रवृत्त संक्रमण कहते हैं। प्रतिसमय असंख्यात गुणश्रेणिके क्रमसे २५ परमाणुओंका जो अन्य प्रकृतिरूप परिणमन होता है वह गुणसंक्रम है। अन्तिम काण्डककी
अन्तिम फालीके सर्वप्रदेशों में जो परमाणु अन्य प्रकृतिरूप नहीं हुए उनका अन्य प्रकृतिरूप सर्वसंक्रमण है ॥४१॥
आगे सर्वसंक्रमणकी प्रकृतियों में तिर्यक् एकादश आता है उसे स्पष्ट करते हैं
तिथंचगति, तिथंचानुपूर्वी, एकेन्द्रिय आदि चार जाति, आतप, उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म, ३. साधारण इन ग्यारह प्रकृतियोंका उदय तियच में ही होता है, इससे इन्हें तिर्यक् एकादश
कहते हैं ॥४१४॥
१. तास्ततिर्यगेकादशमिति मन्तव्याः । तासां तिर्यक्ष्वेवोदयात् ।
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