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एकादश अध्याय (द्वितीय अध्याय) रागभूयस्त्वम्-दिवाभोजनाद् रात्रिभोजने प्रीतिबहुतरत्वम् । तदुक्तम्
'रागाद्युदयपरत्वादनिवृत्ति तिवर्तते हिंसाम् । रात्रि दिवमाहरतः कथं हि हिंसा न संभवति ।। यद्येवं तहि दिवा कर्तव्यो भोजनस्य परिहारः। भोक्तव्यं च निशायां नेत्थं नित्यं भवति हिंसा ।। नैवं वासरभुक्तर्भवति हि रागाधिको रजनिभुक्तो।
अन्न कवलस्य भुक्तेभुंक्ताविव मांसकवलस्य ॥ [ पुरुषार्थ. १३०-१३२] जीववधभूयस्त्वम् । तदुक्तम्
'चम्मट्ठि-कोड-उन्दुर-भुयंग-केसादि असणमज्झम्मि।
पडिदं ण कि पि पस्सदि भुंजदि सव्वं पि णिसिसमए ॥' [ वसु. श्रा. ३१५ गा.] विशेषार्थ-रत्नकरण्डश्रावकाचारमें छठी प्रतिमाका धारी श्रावक रात्रिमें चारों प्रकारका आहार नहीं करता। इससे पहले वहाँ रात्रिभोजन त्यागकी कोई चर्चा नहीं है । तत्त्वार्थ सूत्रके सातवें अध्यायमें अहिंसा व्रतकी पाँच भावनाओंमें एक भावनाका नाम 'आलोकित पान भोजन' है। सर्वार्थसिद्धिमें सातवें अध्यायके प्रथम सूत्रकी व्याख्या में यह प्रश्न किया गया है कि रात्रिभोजन विरमण नामका एक छठा अणुव्रत भी है उसे भी यहाँ गिनाना चाहिए। तो उत्तर दिया है कि अहिंसाव्रतकी भावना आगे कहेंगे। उनमें-से आलोकित पान भोजन भावनामें उसका अन्तर्भाव होता है । यहाँ यह स्मरणीय है कि यह छठा अणुव्रत विषयक शंका मुनियोंको लेकर है गृहस्थोंको लेकर नहीं है। अनगार धर्मामृतमें इसकी चचो की गयी है। तथा तत्त्वाथ राज वार्तिकमें भी सातव अध्यायके प्रथम सूत्रकी व्याख्या में सर्वार्थसिद्धिके समाधानको आधार बनाकर जो शंका-समाधान किया गया है वह भी मुनियों को ही लेकर किया गया है, कि मुनि रात्रिमें चलते-फिरते नहीं हैं। रात्रिभोजनकी अत्यधिक निन्दा रविषेणके पद्मपुराणके चौदहवें पर्वमें बहुत विस्तारसे की गयी है। लिखा है जो सूर्यके डूबनेपर अन्नका त्याग करता है उसका भी अभ्युदय होता है। यदि वह सम्यग्दृष्टि हो तो और भी विशेष अभ्युदय होता है । दिनमें भूखकी पीड़ा उठाना और रातमें भोजन करना, यह कार्य लोकमें सर्वथा त्याज्य है। रात्रिभोजन अधर्म है उसे जिन्होंने धर्म माना है उनके हृदय कठोर हैं। सूर्यके अदृश्य हो जानेपर जो लम्पटी, पापी मनुष्य भोजन करता है वह दुर्गतिको नहीं समझता। जिनके नेत्र अन्धकारके पटलसे आच्छादित है और बुद्धि पापसे लिप्त है वे पापी प्राणी रातमें मक्खी, कीड़े तथा बाल आदि हानिकारक पदार्थ खा जाते हैं । जो रात्रिमें भोजन करता है वह डाकिनी, भूत-प्रेत आदिके साथ भोजन करता है । जो रात्रिमें भोजन करता है वह कुत्ते-बिल्ली आदि मांसाहारी जीवोंके साथ भोजन करता है । अधिक कहनेसे क्या, जो रात्रिमें भोजन करता है वह सब अपवित्र पदार्थ खाता है । जो सूर्यके अस्त होनेपर भोजन करते हैं उन्हें विद्वानोंने मनुष्यतासे बद्ध पशु क जो जिनशासनसे विमुख होकर रात-दिन भोजन करता है वह परलोकमें सुखी कैसे हो १. आदित्येऽस्तमनुप्राप्ते कुरुते योऽन्नवर्जनम् । . भवेदभ्युदयोऽस्यापि सम्यग्दृष्टेविशेषतः ॥-पद्म पु. १४॥२५८
सा.-८
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