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त्रयोदश अध्याय ( चतुर्थ अध्याय )
१७५ कन्यालीकं-भिन्नकन्यामभिन्नां विपर्ययं वा वदतो भवति । इदं च सर्वस्य कुमारादिद्विपदविषयस्यालीकस्योपलक्षणम् । गवालीक-अल्पक्षीरां गां बहुक्षोरां विपर्ययं वा वदतः स्यात् । इदमपि सर्वचतुष्पदविषयालीकस्योपलक्षणम् । क्ष्मालीक-परस्वकामपि भूमिमात्मस्वकां विपर्ययं वा वदतो भवेत् । इदं चाशेषपादपाद्यपदद्रव्यविषयालीकस्योपलक्षणम् । कन्याद्यलीकानां च लोके विगहितत्वेन रूढत्वात् द्विपदादिग्रहणं न क्रियते । कन्याद्यलोकत्रयं लोकविरुद्धत्वान्न वाच्यम् । कूटसाक्ष्यं-प्रमाणीकृतस्य लंचमत्सरादिना कूट बदतः स्यात् । यथाऽहमत्र साक्षीति । अस्य च परपापसमर्थकत्वविशेषेण पूर्वेभ्यो भेदः। तच्च धर्मविपक्षत्वान्न वदेत । धर्म ब्रयान्नाधर्ममिति विवादिभिरभ्यवहितत्वात । न्यासापलाप:-न्यस्यते रक्षार्थमन्यस्मै समयंत इति न्यासः सुवर्णादि । तदपलापं नालपेत् विश्वसितघातकत्वात् । तदुक्तम्
'कन्यामोभूम्यलीकानि न्यासापहरणं तथा ।
कूटसाक्ष्यं च पञ्चेति स्थूलासत्यान्यकीर्तयन् ।।' तथा
'सर्वलोकविरुद्धं यद्यद्विश्वसितघातकम् ।
यद्विपक्षश्च पुण्यस्य न वदेत्तदसूनृतम् ॥' [ योगशा. २१५४-५५ ] किञ्चाज्ञानसंशयादिनाप्यसत्यं न ब्रूयात् किंपुना रागद्वेषाभ्याम् । तदुक्तम् -
'असत्यवचनं प्राज्ञः प्रमादेनापि नो वदेत् ।
श्रेयांसि येन भज्यन्ते वात्ययेव महाद्रुमाः ॥ [ योगशा. २१५६ ] विशेषार्थ-स्वामी समन्तभद्राचार्यने अपने रत्नकरण्ड श्रावकाचारमें स्थूल अलीक न स्वयं बोलता है और न दूसरेसे बुलवाता है उसे सत्याणुव्रत कहा है। आचार्य हेमचन्द्रने अपने योगशास्त्र में स्थूल अलीक (असत्य) पाँच कहे हैं-कन्या अलीक, गोअलीक, भूमि अलीक, कूटसाक्ष्य और न्यासापलाप । तदनुसार पं. आशाधरजीने भी इन पाँच स्थूल अलीकोंको छोड़नेवालेको सत्याणुवती कहा है। कन्याके विषयमें झूठ बोलना कन्यालीक है। शादीविवाह के समय माता-पिता भी अपनी सदोष कन्याको निर्दोष कहते हैं। तथा विरोधी लोग निर्दोष कन्याको भी दोष लगाते हैं। यहाँ 'कन्या'से केवल कन्या ही नहीं लेना चाहिए, किन्तु जितने दो पैरवाले हैं वे सब लेना चाहिए। अतः लड़कोंके विषयमें तथा अन्य स्त्री-पुरुषों के सम्बन्धमें झूठ बोलना भी उसमें गभित समझना चाहिए । गायके विषयमें झूठ बोलना गोअलीक है। जैसे थोड़ा दूध देनेवाली गायको बहुत दूध देनेवाली या बहुत दूध देनेवाली गायको थोड़ा दूध देनेवाली कहना। यहाँ गौसे भी केवल गौ ही नहीं लेना चाहिए किन्तु जितने भी चौपाये हैं उन सबके सम्बन्धमें झूठ बोलना भी उसमें शामिल है। भूमिके सम्बन्धमें झूठ बोलना क्ष्मालीक है। जैसे परायी भूमिको अपनी बतलाना या परिस्थितिवश अपनी भूमिको परायी बतलाना। यहाँ भी क्ष्मालीकसे केवल भमिसम्बन्धी झठ नहीं लेना चाहिए, किन्त बिना पैरकी जितनी वस्तुएँ हैं, जैसे पेड़ वगैरह, उन सबके सम्बन्धमें झूठ बोलना इसीमें आता है। यहाँ यह पूछा जा सकता है कि जब कन्यालीकमें सब दोपाये, गो अलीकमें सब चौपाये और क्ष्मालीकमें सब बिना पैरकी वस्तुएँ ली गयी हैं तो इन असत्योंको कन्यालोक, गोअलीक और क्ष्माअलीक नाम क्यों दिया ? द्विपद अलीक आदि नाम क्यों नहीं दिया? इसका समाधान यह है कि लोकमें कन्या, गाय और भूमिके सम्बन्धमें झूठ बोलनेको अतिनिन्दनीय माना जाता है। अतः लोकविरुद्ध होनेसे ये तीनों झूठ नहीं बोलना चाहिए । घूसके लालचसे या ईर्ष्यावश झूठी बातको सच और सच्ची बातको झूठ कहना कि मैंने ऐसा देखा,
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