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चतुर्दश अध्याय ( पंचम अध्याय )
सगम्बरवत् । उपलक्षणात् माल्यचन्दनादिर्भोगो वस्त्राभरणादिश्चोपभोग इत्यर्थः । उक्तं च'भुक्त्वा परिहातव्यो भोगो भुक्त्वा पुनश्च भोक्तव्यः । उपभोगोऽशनवसनप्रभृतिः पञ्चेन्द्रियो विषयः ॥' [ र. श्रा. ८३ ] कालान्तः - मरणावसानः । उक्तं च
'नियमो यमश्च विहितो द्वेधा भोगोपभोगसंहारे ।
नियमः परिमितकालो यावज्जीवं यमो ध्रियते ॥' [ रत्न. श्रा. ८७ ] ॥१४॥ अथ भोगोपभोगपरिसंख्यानस्य त्रसधात बहुवधप्रमादानिष्टानुपसेव्यविषयभेदात्पञ्चविधत्वख्यापनार्थमाहपलमधुमद्य वदखिलस्त्रस बहुघातप्रमादविषयोऽर्थः ।
त्याज्योऽन्यथाऽप्यनिष्टोऽनुपसेव्यश्च व्रताद्धि फलमिष्टम् ॥ १५॥
त्रसघातविषयः - अन्तः सुषि प्रायं नालीनलपलक्या मृणालनालप्रमुख मागन्तु जन्तूनां सम्मूर्छिमजन्तूनां च योग्यमध्यावकाशम् । तथा बहुजन्तुयोनिस्थानं केतकी - निम्बार्जुनारणिशिग्रुपुष्पमधूकबिल्वादि च वस्तु । बहुघातविषयः - अनन्तकायिकं गुडुची मूलकलशुनार्द्रशृङ्गवेरादिकम् । उक्तं च
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'अल्पफल बहुविघातान्मूलकमार्द्राणि शृङ्गवेराणि नवनीतनिम्बकुसुमं कैतकमित्येवमवहेयम् ॥' [
र. श्रा. ८५ ]
विशेषार्थ -- तत्त्वार्थ सूत्र में इस व्रतका नाम उपभोगपरिभोग परिमाण है । और टीकाकार पूज्यपाद स्वामीने जो एक ही बार वस्तु भोगी जाती है उसे उपभोग और जो बारबार भोगी जाये उसे परिभोग कहा है । सोमदेव ने भोगपरिभोग परिमाण नाम दिया है। और जो एक बार सेवन किया जाये उसे भोग तथा जो बार-बार सेवन किया जाये उसे परिभोग कहा है । स्वामी समन्तभद्र के अनुसार तो 'जो एक बार भोगने में आता है वह भोग है जैसे भोजन । और जो बार-बार भोगा जा सके वह उपभोग है जैसे वस्त्र । तथा उनका त्याग कुछ समय के लिए करना नियम है और जीवन पर्यन्तके लिए करना म है' ||१४||
आगे त्रसघात, बहुघात, प्रमादविषय, अनिष्ट और अनुपसेव्य पदार्थोंके त्यागरूप पाँच व्रतोंका भी अन्तर्भाव इसी व्रतमें करते हैं
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भोगोपभोग परिमाणव्रतीको मांस, मधु और मदिराकी तरह जिनमें त्रस जीवोंका घात होता है या बहुत जीवोंका घात होता है या जिसके सेवनसे प्रमाद सताता है ऐसे समस्त पदार्थ छोड़ने चाहिए। और जिसमें त्रसघात आदि नहीं होता किन्तु अपनेको इष्ट नहीं है या प्रकृतिके अनुकूल नहीं है तथा उच्च कुलवालोंके सेवनके अयोग्य है उन्हें भी छोड़ना चाहिए, क्योंकि व्रतसे इष्ट फलकी प्राप्ति होती है || १५ ||
विशेषार्थ - स्वामी समन्तभद्रने भोगोपभोग परिमाणव्रतका कथन करते हुए कहा है। कि जिन भगवान्के चरणोंकी शरण में आये हुएको चसघात से बचने के लिए मांस और मधु तथा प्रमादसे बचने के लिए मद्यपान छोड़ना चाहिए। पूज्यपाद स्वामीने भी मधु, मद्य,
१. सर्वार्थ. ७।२१
२. ' यः सकृत्सेव्यते भावः स भोगो भोजनादिकः । भूषादिः परिभोगः स्यात्पौनःपुन्येन सेवनात् ॥ ' -सोम. उपा. ७५९ श्लो. ।
३. त्रसहतिपरिहरणार्थं क्षोद्रं पिशितं प्रमादपरिहृतये ।
मद्यं च वर्जनीयं जिनचरणौ शरणमुपयातैः ॥ - र. श्रा ८४ श्लो. ।
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