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धर्मामृत ( सागार) ___ अथ सामायिकसिद्धयर्थं किं कुर्यादित्याह
स्नपना स्तुतिजपान् साम्याथं प्रतिमापिते ।
युञ्ज्याद्यथाम्नायमाद्यादृते संकल्पितेऽर्हति ॥३१॥ स्नपनं 'आश्रुत्य' इत्यादी व्याख्यास्यते । अर्चास्तुतिजपाः प्राग्व्याख्याताः । यथाम्नायं-उपासकाध्ययनानतिक्रमेण । आद्यादते स्नपनादिना। संकल्पिते-निराकारस्थापनापिते । एतेन कृतप्रतिमापरिग्रहा: ६ संकल्पिताप्तपूजापरिग्रहाश्चेति द्वये देवसेवाधिकृता इति सूच्यते ॥३१॥ अथ सामायिकस्य सुदुष्करत्वशङ्कामपनुदति
सामायिकं सुदुःसाधमप्यभ्यासेन साध्यते।
निम्नीकरोति वाबिन्दुः किं नाश्मानं मुहुः पतन् ॥३२॥ सामायिक परीषह और उपसर्गके समय ही संसार और मोक्षका स्वरूप चिन्तन करना लिखा है। किन्तु समन्तभद्र स्वामीने तो सामायिक मात्र में उसका चिन्तन करनेके लिए लिखा है ॥३०॥
सामायिककी सिद्धिके लिए अन्य समयमें श्रावकको क्या-क्या करना चाहिए, यह बतलाते हैं
मुमुक्षु प्रतिमामें अर्पित अर्थात् साकार स्थापनामें स्थापित भगवान् अर्हन्तदेवमें निश्चय सामायिककी सिद्धिके लिए उपासकाध्ययन आदि आगमके अनुसार अभिषेक, पूजा, स्तुति और जप करे । और संकल्पित अर्थात् निराकार स्थापनामें स्थापित अहन्तदेवमें अभिषेकके सिवाय शेष पूजा, स्तुति और जप करे ॥३१॥
विशेषार्थ-निश्चय सामायिककी सिद्धिके लिए यह व्यवहार सामायिक करनेका उपदेश है। व्यवहार सामायिक है अर्हन्तदेवका अभिषेक, पूजा, स्तुति और जप । जिनपजाके दो प्रकार हैं-एक तदाकार जिनबिम्बमें जिन भगवान्की स्थापना करके पूजन करना और दूसरा है पुष्प आदिमें जिन भगवान्की स्थापना करना। पं. आशाधरजीने सोमदेवके उपासकाध्ययनके अनुसार पूजाविधि लिखी है। ये दोनों प्रकार भी उसीमें बतलाये गये हैं। जो प्रतिमाके बिना पूजन करते हैं उन्हें अर्हन्त सिद्धको मध्यमें, आचार्यको दक्षिणमें, उपाध्यायको पश्चिममें, साधुको उत्तरमें और पूर्वमें सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्रको भोजपत्रपर, लकड़ीके पटियेपर, वस्त्रपर, शिलातलपर, रेतनिर्मित भूमिपर, पृथ्वीपर, आकाशमें और हृदय में स्थापित करके अष्टद्रव्यसे पूजन करना चाहिए। पूजनके बाद क्रमसे सम्यग्दर्शन भक्ति, सम्यग्ज्ञान भक्ति, सम्यक्चारित्र भक्ति, अर्हन्त भक्ति, सिद्धभक्ति, चैत्य भक्ति, पंचगुरु भक्ति, शान्ति भक्ति और आचार्यभक्ति करना चाहिए। जो प्रतिमामें स्थापना करके पूजन करते हैं, उनके लिए अभिषेक, पूजन, स्तवन, जप, ध्यान और श्रुत देवताका आराधन ये छह विधियाँ बतलायी हैं। इनका वर्णन उपासकाध्ययनके अनुसार आगे कहेंगे ॥३१॥
अब 'सामायिक बहुत कठिन है' इस शंकाका निवारण करते हैं
यद्यपि सामायिक बहुत कठिनतासे सिद्ध होनेवाली है फिर भी अभ्यासके द्वारा साधी जाती है। क्या बारम्बार गिरनेवाली जलकी बूंद पत्थरको गड्ढेवाला नहीं कर देती
१. सो. उपा. में प. २१३ से पजाविधिका वर्णन है।
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