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धर्मामृत ( सागार ) अथ मृत्युकाले धर्मविराधनाराधनयोः फलविशेषमाह
आराद्धोऽपि चिरं धर्मो विराद्धो मरणे मुधा ।
स त्वाराद्धस्तत्क्षणेऽहः क्षिपत्यपि चिराजितम् ।।१६।। मुधा । उक्तं च
'यमनियमस्वाध्यायास्तपांसि देवाचंना विधिनम् ।
एतत्सर्वं निष्फलमवसाने चेन्मनो मलिनमै ॥' [सो. उपा. ८९७ श्लो.] अपि चिराजितं-असंख्यातभवकोट्यपाजितमपि । उक्तं च
'यबद्धं कमरजो विसंख्यभवशतसहस्रकोटिभिः ।
सम्यक्त्वोत्पत्तौ तत् क्षपयत्येकेन समयेन ।' [ ]॥१६॥ अथ चिरकालभावितश्रामण्यस्यापि विराध्य म्रियमाणस्याकीतिदुष्परिपाका स्वार्थक्षतिं दर्शयति
नृपस्येव यतेधर्मो चिरमभ्यस्तिनोऽस्त्रवत् ।
युधीव स्खलितो मृत्यौ स्वार्थभ्रंशोऽयशःकटुः ॥१७॥ अभ्यस्तिन:-अभ्यस्तः पूर्वमनेनेति विगृह्य श्राद्धं भुक्तं येनेत्यधिकृत्य 'इन्' इत्यनेन इन् प्रत्ययः । उक्तं च
'द्वादशवर्षाणि नृपः शिक्षितशस्त्रो रणेषु यदि मुह्येत् ।
किं स्यात्तस्यास्त्रविधेर्यथा तथान्ते यतेः पुरा चरितम् ।।' [-सो. उपा. ८९८ श्लो.] अपि च
'स किं धन्वी तपस्वी वा यो रणे मरणेऽपि च ।
शरसन्धाने मनःसमाधाने च मुह्यति ।।' [ ] इति ।।१७।। मृत्युकालमें धर्मकी विराधना और आराधनाका फल कहते हैं
दीर्घकाल तक आराधित भी धर्म यदि मरते समय न पाला गया हो तो चिरकाल से किया गया धर्माराधन व्यर्थ है। किन्तु यदि मृत्यके समय धर्मका आराधन किया गया है तो वह धर्म असंख्यात कोटि भवोंमें भी उपाजित पापको दूर कर देता है ॥१६॥
विशेषार्थ-सोमदेव सूरिने भी कहा है-'यदि मरते समय मन मलिन हो गया तो यम, नियम, स्वाध्याय, तप, देवपूजाविधि, दान ये सब निष्फल हैं।' अन्यत्र भी कहा हैजैसे असंख्यात करोड़ों वर्षों में बाँधा हुआ कर्म सम्यग्दर्शनके उत्पन्न होनेपर एक क्षणमें नष्ट हो जाता है वैसे ही अन्तिम समयके धर्माराधनसे होता है ।।१६।।
चिरकाल तक मुनिधर्मकी आराधना करके भी यदि मरते समय विराधना हो जाये तो अपयशके साथ स्वार्थकी भयंकर क्षति बतलाते हैं
जैसे चिरकाल तक शस्त्र संचालनका अभ्यास करनेवाला राजा युद्ध में डिग जाये तो उसका राज्य छिन जाता है और दुखदायी अपयश होता है। उसी तरह चिरकाल तक धर्मकी आराधना करनेवाला यति मरते समय धर्मकर्ममें चूक जाये तो उसका स्वार्थ मोक्ष साधन नष्ट हो जाता है और दुःखदायी अपयश होता है ॥१७॥
विशेषार्थ-सोमदेवाचार्यने भी कहा है-'जैसे बारह वर्ष तक शस्त्र चलानेका शिक्षण लेनेवाला राजा यदि युद्ध में विचलित हो जाये तो उसकी अस्त्रशिक्षा किस कामकी। वैसे ही यदि अन्त समयमें साधु सल्लेखना न करे तो उसका धर्मसाधन किस कामका ? वह
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