Book Title: Dharmamrut Sagar
Author(s): Ashadhar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 343
________________ ३०८ धर्मामृत ( सागार) अथ साधकत्वं व्याकर्तुकामस्तत्स्वामिनं निर्दिशति इत्येकदशधाम्नातो नैष्ठिकः श्रावकोऽधुना। सूत्रानुसारतोऽन्त्यस्य साधकत्वं प्रवक्ष्यते ॥६१॥ अन्त्यस्य-उद्दिष्टविरतस्य । इति भद्रम् ।। इत्याशाधरदब्धायां धर्मामृतपञ्जिकायां ज्ञानदीपिकापर संज्ञायां षोडशोऽध्यायः । अब साधकका कथन करने के लिए उसके स्वामीका निर्देश करते हैं इस प्रकार हमने परम्परासे प्राप्त उपदेशके अनुसार नैष्ठिक श्रावकके ग्यारह भेदोंका वर्णन किया । अब परमागमके अनुसार अन्तिम उद्दिष्ट विरत श्रावकके तीसरे साधकपनेरूप पदको विशेष रूपसे कहेंगे ॥६१॥ इस प्रकार पं. आशाधर रचित धर्मामृत के अन्तर्गत सागारधर्मकी स्वोपज्ञ संस्कृत टीका तथा ज्ञानदीपिकानुसारिणी हिन्दी टीकामें प्रारम्भसे १६वाँ और इस प्रकरणके अनुसार सप्तम अध्याय पूर्ण हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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