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सप्तदश अध्याय ( अष्टम अध्याय)
३१३ अथवं संयमविनाशहेतुसंनिधाने कायत्यागं समय साम्प्रतं कालोपसर्गमरणनिर्णयपूर्वकप्रायोपवेशनेन तत्तनिष्ठासाफल्यविधापनार्थमाह
कालेन वोपसर्गेण निश्चित्यायुः क्षयोन्मुखम् । __ कृत्वा यथाविधि प्रायं तास्ताः सफलयेत् क्रियाः ॥९॥ उपसर्गेण-दुर्निवाराशुकारिरोग-शत्रुप्रहारादिलक्षणेनोपद्रवेण । प्रायं-संन्यासयुक्तानशनम् । तास्ता:-दर्शनिकादि-प्रतिमाविषयाः । तदुक्तम्
'अन्तःक्रियाधिकरणं तपःफलं सकलदर्शिनः स्तुवते ।
तस्माद्यावद्विभवं समाधिमरणे प्रयतितव्यम् ॥' [ र. श्रा. १२३ ] ॥९॥ अथ सुनिश्चिते मरणे स्वाराधनापरिणत्या मुक्तिः करस्थेत्युपदेशार्थमाह
देहादिवैकृतैः सम्यङ् निमित्तस्तु सुनिश्चिते ।
मृत्यावाराधनामग्नमतेरे न तत्पदम् ॥१०॥ देहादिवैकृतैः-शरीरशीलादिविकृतिभिः स्वस्थातुररिष्टैरित्यर्थः । सम्यग्निमित्तैः-समीचीनभाविशुभाशुभज्ञानोपायैः कर्णपिशाचिकादिविद्याज्योतिषोपश्रुतिशकुनादिभिः ॥१०॥ अथोपसर्गमरणोपनिपाते प्रायविधिमाह
भृशापवर्तकवशात् कदलीघातवत्सकृत् ।
विरमत्यायुषि प्रायमविचारं समाचरेत् ॥११॥ अपवर्तक-अपमृत्युकारणम् । कदलीघातवत्-छिद्यमानकदलीकाण्डे यथा । अविचार-विचरणं १४ में आत्मघात कैसे हो सकता है । हाँ, जो क्रोधादि कषायमें आकर श्वासनिरोध, जल, अग्नि विष या शस्त्र द्वारा प्राणोंका घात करता है उसके आत्मघात होना यथार्थ है ।।८।।
इस प्रकार संयमके विनाशके कारण उपस्थित होनेपर शरीरके त्यागका समर्थन करके अब मरणका निर्णय होनेपर संन्यासपूर्वक उपवासके द्वारा प्रतिमाविषयक कियाओंको सफल करनेकी प्रेरणा करते हैं
__आयु पूरी होनेका समय आ जानेसे अथवा किसी उपसर्गके कारण यह निश्चित होनेपर कि अब जीवनका विनाश निकट है, विधिपूर्वक संन्याससहित उपवास स्वीकार करके दर्शनिक आदि प्रतिमा विषयक जो नित्य नैमित्तिक क्रियाएँ की हैं उन्हें सफल करना चाहिए। अर्थात् जीवन-भर जो धर्म किया है उसकी सफलता समाधिपूर्वक मरणसे ही सम्भव है । अन्यथा सब निष्फल है ।।९।। ___आगे कहते हैं कि आत्माकी आराधनारूप परिणतिके साथ शरीर त्यागनेपर मुक्ति हाथमें है
शरीर आदिके विकारोंके द्वारा और भावी शुभ-अशुभ जाननेके समीचीन उपाय ज्योतिष, शकुन आदिके द्वारा मरणके सुनिश्चित होनेपर निश्चय आराधनामें संलग्न पुरुषको वह पद दूर नहीं है अर्थात् उसे कुछ ही भवोंमें निर्वाणकी प्राप्ति हो सकती है ॥१०॥
अब अचानक उपसर्गसे मरण उपस्थित होनेपर संन्यासविधि कहते हैंअवश्यभावि अपमृत्युके कारणवश कदलीघातकी तरह आयुके एक साथ समाप्त होने
१. राधकारि-भ. कु. च.। २. शरीरसंशील-भ. कु. च.।
सा.-४०
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