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धर्मामृत (सागार )
' स ब्राह्म विवाहो यत्र वरायालङ्कृत्य कन्या प्रदीयते ' त्वं भवास्य महाभागस्य सधर्मचारिणीति ।' विनियोगेन कन्याप्रदानात् प्राजापत्यः । गो-भूमि सुवर्णपुरस्सरं कन्याप्रदानादार्ष: । स दैवो विवाहो यत्र यज्ञार्थ३ मृत्विजः कन्याप्रदानमेव दक्षिणा । मातुः पितुर्बन्धूनां चाप्रामाण्यात्परस्परानुरागेण मिथः समवायाद् गान्धर्वः । पणबन्धेन ( ? ) कन्याप्रदानादासुरः । सुप्तप्रमत्तकन्यादानात्पैशाचः । कन्यायाः प्रसह्यादानाद्राक्षसः । एते चत्वारोऽधर्म्या अपि नाधर्म्या यद्यस्ति वधूवरयोरनपवादं परस्परस्य भाव्यत्वम् । - नीति वा ३१।४-१३ | ६ अत्राह मनुः
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'ब्राह्मो देवस्तथैवार्षः प्राजापत्यस्तथासुरः । गान्धर्वो राक्षसश्चैव पैशाचश्चाष्टमोऽधमः ॥ आच्छाद्य चाचयित्वा च श्रुतिशीलवते स्वयम् । आहूय दानं कन्याया ब्राह्मो धर्म्यः प्रकीर्तितः ॥ यज्ञे तु वितते सम्यगृत्विजे कर्म कुर्वते । अलङ्कृत्य सुतादानं देवं धर्म्यं प्रचक्षते ॥ एकं गोमिथुनं द्वे वा वरादादाय धर्मतः । कन्याप्रदानं विधिवदार्षो धर्म्यः स उच्यते ॥ सहोभौ चरतां धर्ममिति वाचानुभाव्य तु । कन्याप्रदानमभ्यच्यं प्राजापत्यो विधिः स्मृतः ॥ ज्ञातिभ्यो द्रविणं दत्वा कन्याये चैव शक्तितः । कन्याप्रदानं स्वाछन्द्यादासुरोऽधम्र्म्यं उच्यते ॥ इच्छयाऽन्योन्यसंयोगः कन्यायाश्च वरस्य च । गान्धवः स तु विज्ञेयो मैथुन्यः कामसंभवः ||
अविशुद्ध कन्याका ग्रहण उत्तम नहीं है । जो कन्या रोगी हो, अल्पायु हो, अप्रसन्न रहती हो, कुलटा हो, लड़ाकू हो, अभागिनी हो, देखने में अप्रिय हो उसके साथ विवाह नहीं करना चाहिए । वर कुलीन और सुशील होना चाहिए। कहा है- कुल, शील, सनाथता, विद्या, धन, शरीर और आयु इन सात गुणोंकी परीक्षा करके ही कन्या देना चाहिए। सबसे प्रथम कुलको स्थान दिया है कि अकुलीनको कन्या कभी भी नहीं देना चाहिए। कहा है- 'कन्याका मरना उत्तम है किन्तु अकुलीनको कन्या देना उत्तम नहीं है ।'
विवाह के चार प्रकार कहे हैं - ब्राह्म, प्राजापत्य, आर्ष और दैव । इनके अतिरिक्त गान्धर्व, आसुर, राक्षस और पैशाच विवाह अधर्म्य हैं । इनका लक्षण इस प्रकार है - कन्याको अलंकृत करके वरको देना कि तू इस भाग्यशालीकी धर्मपत्नी होओ, ब्राह्म विवाह है। बदलेमें कन्या देना प्राजापत्य विवाह है। गौ, भूमि, सुवर्णदान पूर्वक कन्या देना आ विवाह है । जिसमें यज्ञ के पुरोहितको यज्ञ कराने की दक्षिणाके रूपमें कन्या दी जाती है वह दैवविवाह है। माता-पिता, बन्धु बान्धवोंकी अनुमतिके बिना परस्परके अनुरागसे जो विवाह किया जाता है वह गान्धर्व है |... कन्या देना आसुर विवाह है । सोती हुई या बेहोश कन्याको उठा ले जाना पैशाच विवाह है। जबरदस्ती कन्याको ले जाना राक्षस विवाह है । ये चारों विवाह अधर्म्य होनेपर भी यदि वधू और वरमें परस्पर में अपवादरहित भव्यता है तो अधर्म्य नहीं है । मनुने कहा है- 'ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर, गान्धर्व, राक्षस और पैशाच आठ भेद है । श्रुति और शीलसे सम्पन्न वरको स्वयं आमन्त्रित करके पूजापूर्वक
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