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एकादश अध्याय ( द्वितीय अध्याय)
१०९ अथ पात्रदानपुण्योदयफलभाजां भोगभूमिजानां जन्मप्रभृति सप्ताहसप्तकभाविनीरवस्था निर्देष्टुमाह
सप्तोत्तानशया लिहन्ति दिवसान्स्वाङ्गष्टमार्यास्ततः
को रिङ्गन्ति ततः पदैः कलगिरो यान्ति स्खलस्तितः । स्थेयोभिश्च ततः कलागुणभृतस्तारुण्यभोगोद्गताः ।
सप्ताहेन ततो भवन्ति सुदृगादानेऽपि योग्यास्ततः ॥६॥ आर्याः--भोगभूमिजाः । को-भूमौ । रिङ्गन्ति-पद्भयां विना सर्पन्ति । कला:-गीताद्याः । । गुणाः-लावण्याद्याः । सुदृगादाने-सम्यक्त्वग्रहणे । उक्तं च
'तदा स्त्रीपुंसयुग्मानां गर्भविटुंठितात्मनाम् । दिनानि सप्त गच्छन्ति निजाङ्गष्ठावलेहनैः ।। रिङ्गतामपि सप्तैव सप्तास्थिरपरिक्रमैः। स्थिरैश्च सप्त तैः सप्त कलासु च गुणेषु च ॥ सप्तभिश्च दिनस्ते स्युः सम्पूर्णनवयौवनाः ।
सम्यक्त्वग्रहणेऽपि स्युर्योग्यास्ते सप्तभिर्दिनैः ॥' [ ] ॥६८॥ अथ मुनिदेयनिर्णयार्थमाहउत्सर्पिणी होती है। इस अद्धापल्यसे नारकी, तिर्यंच, मनुष्य और देवोंकी कर्मस्थिति, भवस्थिति, आयुस्थिति और कायस्थिति ज्ञात होती है ॥६७॥
अब पात्रदानके पुण्यसे भोगभूमिमें जन्म लेनेवाले जीवोंकी जन्मसे लेकर सात सप्ताह तक होनेवाली अवस्थाको बतलाते हैं
भोगभूमिमें जन्म लेनेवाले मनुष्य जन्मके अनन्तर सात दिन तक ऊपरको मुख करके सोते हुए अपने अंगूठेको चूसते हैं। प्रथम सप्ताहके अनन्तर सात दिन तक पृथ्वीपर रंगते हैं। द्वितीय सप्ताहके अनन्तर सात दिन तक मनोहर वाणी बोलते हुए गिरते-पड़ते चलते हैं । तीसरे सप्ताह के अनन्तर सात दिन तक स्थिर पैरोंसे चलते हैं। चतुर्थ सप्ताह के अनन्तर सात दिनोंमें कला, गीत आदि गुणों और लावण्य आदिको धारण कर लेते हैं। पंचम सप्ताहके अनन्तर सात दिनोंमें युवा होकर भोगोंको भोगनेमें समर्थ हो जाते हैं। और छठे सप्ताहके अनन्तर सात दिनोंमें सम्यक्त्व ग्रहण करनेके योग्य हो जाते हैं ॥६८॥
विशेषार्थ-भोगभूमिमें दस प्रकार कल्पवृक्षोंसे मनुष्योंको भोग-उपभोगके सब पदार्थ प्राप्त होते हैं इसीसे उसे भोगभूमि कहते हैं। भोगभूमिमें नगर, ग्राम, राजा, कुल, शिल्प, कृषि आदि षट्कर्म, वर्ण आश्रम आदि नहीं होते। रात-दिनका भेद, सर्दी, परस्त्री रमण, परधन हरण आदि नहीं होते । परिवार में स्त्री और पुरुष दो ही होते हैं। नौमास आयु शेष रहनेपर स्त्रीके गर्भ रहता है और मृत्युका समय आनेपर युगल बालकबालिका जन्म देकर पुरुष छींकसे और स्त्री जंभाईके आनेसे मर जाते हैं। उत्कृष्ट भोगभूमिमें अंगूठा चूसने आदिमें तीन-तीन दिन लगते हैं। मध्यम भोगभूमिमें पाँच-पाँच दिन और जघन्य भोगभूमिमें सात-सात दिन लगते हैं। इस तरह उत्कृष्ट भोगभूमिमें २१ दिनमें, मध्यम भोगभूमिमें ३५ दिनमें और जघन्य भोगभूमिमें ४९ दिनमें वे युगल बालक-बालिका युवा होकर सम्यक्त्व ग्रहणके योग्य हो जाते हैं । और परस्परमें रमण करते है ॥६८॥
__ आगे मुनियोंको क्या देना चाहिए, इसका निर्णय करते हैं
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