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धर्मामृत ( सागार ) स्वभार्या वनमालां प्रतिमोचयति स्म । सा तु तद्विरहकातरा पुनरागमनमसंभावयन्ती लक्ष्मणं शपथानकारयत् । यथा-प्रिये ! राम मनीषिते देशे संस्थाप्य यद्यहं भवती स्वदर्शनेन न प्रीणयामि तदा प्राणातिपातादिपातकिनां गतिं यामीति । सा तु तैः शपथैरतुष्यन्ती यदि रात्रिभोजनकारिणां शपथं करोषि तदा त्वां प्रतिमञ्चामि नान्यथेति । स च तथेत्यभ्युपगत्य देशान्तरं प्रस्थितवानिति । तदुक्तम्
'श्रूयते ह्यन्यशपथाननादृत्यैव लक्ष्मणः।
मिशाभोजनशपथं कारितो वनमालया ॥' [ योगशा. ३।६८ ] ॥२६॥ अथ लौकिकसंवाददर्शनेनापि रात्रिभोजनप्रतिषेधमाह
यत्र सत्पात्रदानादि किंचित् सत्कर्मनेष्यते। कोऽद्यात्तत्रात्ययमये स्वहितैषी दिनात्यये ॥२७॥ 'नेष्यते बारिपीति शेषः । तच्छास्त्रं यथात्रयी तेजोमयो भानुः सर्ववेदविदो विदुः । तत्करैः पूतमखिलं शुभं कर्म समाचरेत् ।। नैवाहुतिर्न च स्नानं न श्राद्धं देवतार्चनम् । दानं चाविहितं रात्री भोजनं तु विशेषतः ॥ दिवसस्याष्टमे भागे मन्दीभूते दिवाकरे । नक्तं तद्धि विजानीयान्न नक्तं....शि भोजनम् ।। देवैस्तु पूर्वाह्ने मध्याह्न ऋषिभिस्तथा । अपराले तु पितृभिः सायाह्ने दैत्यदानवैः ।। सन्ध्यायां यक्षरक्षोभिः सदा भक्तं कुलोवरम् ।
सर्ववेलां व्यतिक्रम्य रात्रौ भुक्तमभोजनम् ॥' [ विशेषार्थ-जब सीता और लक्ष्मणके साथ रामचन्द्रजी वनवास में थे तो उस प्रदेशमें पहुँचे जहाँ लक्ष्मण की ससुराल थी। लक्ष्मण स्थानकी खोज में भटकते हुए एक वृक्षके नीचे पहुँचे जहाँ उनकी पत्नी वनमाला उनके वियोगमें आत्मघात करने के लिए तत्पर थी। परिचय होनेपर वनमाला उन्हें छोड़ती नहीं थी और लक्ष्मणको रामचन्द्रजीके ठहरने आदिकी व्यवस्था करनी थी। अतः लक्ष्मणने लौटकर आनेके लिए अनेक कसमें खायीं। किन्तु वनमालाने रात्रिभोजनके पापकी कसम दिलायी। इससे प्रमाणित होता है रात्रिभोजनसे लगनेवाला पाप हत्यासे भी बड़ा माना जाता था ॥२६।।
आगे लौकिक संवाद दिखाकर भी रात्रिभोजनका निषेध करते हैं
जिस रात्रि में अन्य मतावलम्बी भी सत्पात्रको दान देना, स्नान, देवार्चन आदि कोई भी शुभकर्म नहीं मानते, उस दोष-भरी रात्रिमें इस लोक और परलोकमें अपना हित चाहनेवाला कौन समझदार व्यक्ति भोजन करेगा ? ॥२७॥
विशेषार्थ-सनातन धर्ममें भी रात्रिमें शुभकर्म करनेका निषेध है। कहा है-'समस्त वेदज्ञाता जानते हैं कि सूर्य प्रकाशमय है। उसकी किरणोंसे समस्त जगत्के पवित्र होनेपर ही समस्त शुभकर्म करना चाहिए। रात्रिमें न आहुति होती है, न स्नान, न श्राद्ध, न देवार्चन, न दान | ये सब अविहित हैं और भोजन तो विशेषरूपसे वर्जित है।' 'दिनके आठव भागमें सूर्यका तेज मन्द हो जाता है। उसीको रात्रि जानना। रात्रिमें भोजन नहीं करना चाहिए।'
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