________________
ॐ ह्री श्री वर्द्ध मानाय नमः
ॐ ह्री श्री चंद्रसागराय नमः पूज्य आचार्य कल्प श्री चन्द्र सागर जी महाराज का
जीवन परिचय - आर्यिका श्री १०५ सुपार्श्वमती माताजी -
जन्म
इस भरत क्षेत्र में महाराष्ट्र देश है-उसमें नादगाव नामक नगर है। उस नगर में मंत्र वाल जातीयोत्पन्न जैन धर्म परायण नथमल नामक श्रावक रहते थे-उनकी भार्या का नाम सीता था । वास्तव में वह सीता ही थी-अर्थात शीलवती और पति के आजानुसार चलने वालो थी। सेठ नथमलजी और सीता वार्ड का सम्बन्ध जयकुमार सुलोचना के समान था। शालि वाहन सम्वत् १६०५ वि०सवत् १९४०मिति माघ कृष्ण त्रयोदशी के दिन शनिवार को रात्रिको नक्षत्र पूर्वापाढा मे सीता वार्ड की पवित्र कुक्षि से पुत्र रत्न की उत्पत्ति हुई। जिसके रूप राशि ने मूर्य चन्द्रमा भी लज्जित हो गये। पुत्र का मुख देखकर माता को असीम आनन्द हुआ। घर में वादित्र वजने लगे। पिता हपित होकर कूटम्वी जनो को पारितोपिक देने लगे। जन जन के हृदय मे खुशिया थी । दसवे दिन बालक का नामकरण संस्कार किया। जन्म नक्षत्रानुसार जन्म नाम भूरामल भीमसेन आदि होना चाहिये । परन्तु पुत्रोत्पत्ति के समय माता पिता को अपूर्व आनन्द हुआ था इसलिये ही उन्होने इनका नाम बुशहाल चन्द रखा हो-ऐमा अनुमान लगाया जाता है । इनके जन्म तिथिवार नक्षत्र महीना इनके हस्तलिखिन गुटके मे पौष कृष्णा अयांदनी के दिन शनिवार पूर्वापाढा नक्षत्र रात्रिक समय लिखा है-वह महाराष्ट्र देश की अपेक्षा है क्योकि मरुस्थल में और महाराष्ट्र के कृष्ण पक्ष में एक महीने का अन्तर है-शुक्ल पक्ष दोनों के समान है इसलिए माघ कृष्ण त्रयोदशी कहो या पौष कृष्ण प्रयोदशी दोनों का एक ही अयं है।
वह बालक खुशहाल चन्द्र द्विनीया के चन्द्रवत् दिन प्रतिदिन वृद्धिगन हो रहे थे। गिन कार चन्द्रमा की वृद्धि मे समुद्र वृद्धिगत होता है उसी प्रकार खुशहाल चन्द्र की वृद्धि में गुटुम्बी गो का हर्प रूपी समुद्र बढ़ रहा था। वाह : पत्नी वियोग : ब्रह्मचर्यवत
अभी खुशहाल चन्द्र ८ वर्ष के पूरे नही हये थे कि पूर्वोपाजिन पाप कर्म के उदय ने पिना छत्र छाया शिर पर से उठ गई-अर्थात् पिता का स्वर्गवास हो गया। नमन पर का भार
'