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परिपाटी हो, उसी तरह करे । बाद में दोनों हाथों को शुद्ध जल से धोकर पोंछकर दाहिने हाथ में साथिया केशर चन्दन का कर, पंचामृत-जलादिका कलश ऊपर वस्त्र से ढँककर, धूप देकर हाथ में लेकर प्रभु प्रतिमा के दाहिनी बाजू सडा रहे । ॥ कलश की ढाल ४ ॥
कलश
आधार ॥
तर्ज- श्री शान्ति जिननो कलश कहीशु, प्रेमसागर पूर० श्री तीर्थपतिनो मज्जन - गाइये सुखकार । नरखेत्र मण्डण दुहविहडण - भविक मन विहाँ शव राणा, हर्ष उच्छव-धयो जग-जयकार | दिशि कुमरी अवधि विशेष जाणी-ललो हर्ष अपार ॥ १ ॥ निय अमर अमरी संग कुमरी - गावती गुण छन्द । जिन जननी पासे, आत्री पहुँती - गहगहती आणन्द || हे माय ! तं जिनराज जायो-गचि वधायो रस्म । अम्द जम्म निम्मल करण कारण करीश सूक्ष्य कम्म ॥२॥ विहाँ भूमिशोधन' दीप दर्पण - चायनीजण धार ।
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१ यहाँ प्रभु के सामने वस्त्र से भूमि शोधन करना । २- प्रभु के सन्मुख दीपक -फानस दिखाना ।
३ - प्रभु को दर्पण विसाना ।
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-प्रभु
के आगे पसा भलना (हवा करना ) चाहिये ।