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बात बात में बोध
प्रो. ओमप्रकाश---जैन धर्म में कोई जाति का बन्धन नहीं है। इतिहास को
पढ़ने से पता चलता है भगवान महावीर क्षत्रियवंशी थे, गौतम स्वामी ब्राह्मण जाति के थे, जम्बू स्वामी वैश्य व हरिकेशी मुनि चाण्डाल जाति के थे। भगवान महावीर का प्रमुख श्रावक आनन्द कृषिकार व शकडाल कुम्भकार था। आज भी अनेक जातियों के
लोग जैन धर्म के अनुयायी है। विमल-प्रोफेसर साहब ! मैंने कहीं पढ़ा था-भगवान बुद्ध ने बौद्ध धर्म का
प्रवर्तन किया व महात्मा ईसा ने ईसाई धर्म को चलाया। क्या वैसे
ही जैन धर्म भी किसी जैन नामक व्यक्ति का चलाया हुआ है ? प्रो. ओमप्रकाश-नहीं-नहीं। यह जैन किसी महात्मा या भगवान का नाम
नहीं है। जैन धर्म की निष्पत्ति जिन शब्द से होती है। जिन उस आत्मा का नाम है जिसने राग-द्वेष आदि विकारों को जीत लिया । उस आत्मा को वीतराग भी कहते हैं। वीतराग पुरुषों द्वारा भाषित
धर्म को जैन धर्म कहते हैं। विमल-सर, मैने सुना है-सत्य अपौरुषेय है अर्थात किसी पुरुष विशेष के
द्वारा भाषित नहीं हैं। ऐसे में पुरुष विशेष के द्वारा निरुपित धर्म यथार्थ ही है ऐसा निश्चय कैसे किया जा सकता है। उसमें बहुत सारी असंगतियां होनी सम्भव है। जैन धर्म की यथार्थता भी इस
प्रश्न से अछूती केसे रह सकती है ? प्रो. ओमप्रकाश-यथार्थ तत्त्व निरुपण में सबसे बड़ी बाधा व्यक्ति की
रागद्वेषात्मक प्रवृत्ति है। चूंकि वीतराग पुरुष पूर्णतः राग और द्वेष से मुक्त होते हैं अतः उनके दर्शन में अयथार्थता के लिए कहीं भी
अवकाश नहीं रह सकता। कमल-जैन धर्म का प्रारम्भ कब हुआ प्रोफेसर साहब ? प्रो. ओमप्रकाश--कनल : प्रवाह की दृष्टि से यह धर्म शाश्वत है। किन्तु
वर्तमान युग की अपेक्षा से इसका प्रारम्भ भगवान ऋषभ से होता है । भगवान ऋषभ के बाद २३ तीर्थ कर और हो चुके हैं जिन्होंने इस धर्म परम्परा को पल्लवित और पुष्पित किया। हमारे सबसे निकट और इस परम्परा के अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर हुए हैं, जिन्होंने धर्म के साथ संघ की व्यवस्था की। इसी दृष्टि से हम कह सकते हैं, यह
भगवान महावीर का शासन है। विमल- भगवान ऋषभ के समय भी क्या जेन धर्म नाम प्रचलित था।
भो० ओमप्रकाश-जैन धर्म नाम तो भगवान महावीर के कई शताब्दियों Jain Education International For Private & Personal Use Only
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