Book Title: Bat Bat me Bodh
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 14
________________ जैन धर्म (प्रोफेसर ओम प्रकाश अपने कमरे में एक कुर्सी पर बैठे हैं, उनके सामने १०वीं कक्षा में पढ़ने वाले दो विद्यार्थी बैठे हैं ।) विमल-प्रोफेसर साहब ! आप नाम के पीछे जैन टाइटल कब से लगाने लग गए ? प्रो० ओमप्रकाश--विमल ! इस वर्ष गर्मी की छुट्टियों में मैं किसी काम से दिल्ली गया था। कुछ दिन रहा। वहां आचार्य श्री तुलसी के सान्निध्य में विज्ञान भवन में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में भाग लेने का मुझे अवसर मिला। आचार्य श्री का मार्मिक प्रवचन सुनने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्हीं दिनों रेडियो व टेलिविजन पर उनकी एक वार्ता सुनी। अखबारों में भी एक दो बार उनकी चर्चा पढ़ी । मेरे मन में ऐसे महान व्यक्ति से मिलने की ललक पैदा हुई। मैंने उनसे व्यक्तिगत सम्पर्क किया। धर्म के सम्बन्ध में अपनी जिज्ञासाएं रखी। जैन धर्म को समझने का प्रयास किया। मुझे जैन धर्म के सिद्धान्त अच्छे लगे, उनके प्रति मन में आस्था जगी। तब से मैं जैन धर्म को स्वीकार कर जैन बन गया और अपने नाम के पीछे जैन शब्द लगाने लगा। विमल-पर आपने तो ईसाई कुल में जन्म लिया, फिर आप जैन कैसे बन सकते हैं ? प्रो. ओमप्रकाश-धर्म का सम्बन्ध किसी जाति या कुल से नहीं है। इसका सम्बन्ध व्यक्ति के विवेक से है । जन्म किसी भी परम्परा में हो सकता है । यह व्यक्ति की नियति है, किन्तु समझ आने पर भी उस परम्परा से चिपके रहना बुद्धिमानी नहीं है। मैंने ईसाई कुल में जन्म लिया यह सच है. किन्तु सोच समझकर जैन धर्म का अनुयायी बना हूं। इसमें कहीं कोई विरोध नहीं। कमल-तो क्या किसी भी जाति में जन्म लेने वाला जैन धर्म स्वीकार कर सकता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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