Book Title: Anuyogdwar Sutram Tika
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: 

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sh Kailassagarsun Gyarmandir श्रीअनुशाणगं कामसरे पडितं, ततो तं देवमिहुणगै जायं पेच्छति, तओ वाणरो सपत्तिओ संपहारेति जहा रुख अवलग्गितुं सरे पडामो जा देव-13द्रव्यावश्यहार.वृत्तामिहुणगं भवामो, तओ पडिताणि, उरालं माणुसजुअलं जायं, सो भणइ-पडामो जाहे देवजुयलगं भवामो, इत्थी वारेती, को जाणति मा ण काधिकारः // 12 // होमो देवा, पुरिसो भणति-जइ ण होज्जामो किं माणुसत्तणंपि णस्सिहिति ?, तीए भणिय-को जाणइत्ति, ततो सो तीए वारिज्जमाणोऽविर |पडिओ, पुणोवि वाणरो चेव जाओ, पच्छा सा रायपुरिसेहिं गहिया, रण्णो भज्जा जाया, इतरोऽवि मोयारपहिं गहिओ खड्डुओ सिक्खा| वितो, अण्णया य ते मोयारगा रणो पुरओ पेच्छं देति, रायावि सह तीए देवीए पेच्छति, ताहे सो वाणरो देविं निज्झाएंतो अहिलसति, | लओ तीए अणुकंपाए वाणरो भणिओ-जो जहा वट्टए कालो, तं तहा सेव वाणरा! / मा वंजुलपरिभट्ठो, वाणरा ! पडणं सर // 1 // उपनयः पूर्ववत् , भावहीणाधितभावेवि उदाहरणं, जहा काइ अगारी पुत्तस्स गिलाणस्स हेणं तित्तकडुभेसयाई मा णं पीलेज्ज ऊणए देइ, 5 पउणति ण तेहि, आहिएहिं मरति बालो, वहाहारे / साम्प्रतमिदमेव द्रव्यावश्यकं नयनिरूप्यते, ते च मूलनया नैगमादयस्तथा चोक्तम्-'णेगम संगह ववहार उज्जुसुतो चेव होइ बोधव्वो / सद्दे य समभिरूढे एवंभूते य मूलनया // 1 // ' तओ 'णेगमस्से' त्यादि (14-17) नैगमस्यैकोऽनुपयुक्तो देवदत्तः आगमतः एक द्रव्यावश्यक द्वावनुपयुक्तो देवदत्तयज्ञदत्तौ आगमतो द्रव्यावश्यके त्रयः अनुपयुक्ता देवदत्तयज्ञ-द दत्तसोमदत्ताः आगमतो दून्यावश्यकानि, किं बहुना ?, यावन्तोऽनुपयुक्ता देवदत्तादयस्तावत्येव तानि नेगमस्याऽऽगमतो द्रव्यावश्यकानि, एवमतीतान्यनागतानि च प्रतिपद्यत इति, नैगमस्य सामान्यविशेषाभ्युपगमप्रधानत्वात् , विशेषाणां च विवक्षितत्वात्, आह-एवं सामान्यविशेषाभ्युपगमरूपत्वात् अस्य सम्यग्दृष्टित्वप्रसङ्गः, न, परस्परतोऽत्यन्तनिरपेक्षत्वाभ्युपगमात्, उक्तं च-'दोहिवि णएहिं नीतं सत्थमुलूएण // 12 // तहवि मिच्छत्तं / जै सविसयप्पहाणतणेण अण्णोण्णनिरवेक्खो ॥शा एवमेव ववहारस्सवि' एवमेव यथा नैगमस्य तथा व्यवहारस्यापि है For Private and Personal Use Only

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