Book Title: Anuyogdwar Sutram Tika
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: 

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीअनु साइरेगट्ठवासो जाओत्ति, ताहे रण्णा सयमेव लेहो लिहिओ जहाऽहीयतु कुमारो, कुमारस्स य मादीसव्वक्कीए रण्णा पासट्टियाए तत्थ द्रव्यावश्यहारि.वृत्ती पच्छण्णो बिन्दू पाडिओ, रण्णा अवाइय मुद्दित्ता उज्जेणी पेसिओ, वाइओ, वायगा पुच्छिया-किं लिहियं?, ते णेच्छंति कहिउं, ताहे कुमारेण १काधिकार सयमेव वाइओ, चिंतिय चणे-अम्हं मोरियवंसियाणं अपडिहया आणाओ, कहमहं अप्पणो पिउणो आणं भंजामि?, तओ अणेण तत्तसलागाए अच्छीणि अंजियाणि, ताहे रण्णा णायं, परितप्पित्ता उज्जेणी अण्णस्स कुमारस्स दिण्णा, तस्सवि कुमारस्स अण्णो गामो दिण्णो, अण्णया तस्स कुणालस्स अंधयस्स पुत्तो जाओ, णामं च से कयं संपती, सो अंधयो कुणालो गंधब्वे अतीवकुशलो, अण्णया य अण्णायो उज्जेणीए लगायतो हिंडइ, तत्थ रण्णो निवेदियं जहा एरिसो सो गंधव्वि जो अंधल ओत्ति, तओ रण्णा भणियं-आणेहत्ति, ताहे आणिओ जवणिय तरिओ गायति, जाहे अतीव असोगो अक्खित्तो, ताहे भणति-किं ते देमि ?, तओ एत्थ कुणालेण गीतं- 'चंदगुत्तपवोत्तो उ, बिंदुसारस्स णत्तुओ / असोगसिरिणो पुत्तो, अंधो जायति कागिणिं // 1 // ताहे रण्णा पुच्छितं-को एस तुम? , तेण कहितं-तुभं चेव पुत्तो, ततो जवलाणियं अवसारे कंठे पपेत्तुं असुपातो कओ, भाणियं च-कं देमि, तेण भाणयं-कागणिं मे देहि, रण्णा भणियं-किं कागिणिए व तुम करि हिसि जं कागणिं जायसि, ततो अमञ्चेहिं भणियं-सामि! रायपुत्ताणं रज्जं कागणि भण्णति, रण्णा भाणियं-कि तुम काहिसि रज्जणं ?, कुणालेण भणिय-मम पुत्तो अत्थि संपतीणाम कुमारो, तओ से दिण्णं रज्ज, सो चेव उवणओ णवरमहियक्खरेणंति अभिलावो कायव्वो, अहवा भावाहिए लोकय इमं अक्खाणयं-कामियसरस्स तीरे य बंजुलरुको महतिमहालओ, तत्थ किर रुक्खे अवलग्गिउं जो सरे पडति सो जइ तिरिक्खजोणिओ तो मणुस्सो होति, अह मणुस्सो पडनि ततो देवो होति, अहो पुणो बीयं वारं पडति तो पुण सोचेव | IN // 11 य होइ, तत्थ वाणरो सपत्तिओ ओयरति पतिदिणं पाणितं पातुं, अण्णया पाणिपियणट्ठाए आगतो संतो वंजुलरुक्खाओ मणुस्सिस्थिमिहु For Private and Personal Use Only

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