Book Title: Anuvrat Sadachar Aur Shakahar
Author(s): Lokesh Jain
Publisher: Prachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan

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Page 13
________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार स्थापना में मददरूप हो सकता है। इतिहास सीता, अंजना आदि सतियों को उनके शीलयुक्त जीवन के लिए याद करता है। ___ परिग्रह आज के समाज का सबसे बड़ा दूषण जिसने सामाजिक-आर्थिक असमानता, अराजकता, गरीबी, भुखमरी आदि को जन्म दिया है। कुछ के पास तो बहुत कुछ अर्थात् सभी कुछ है, जरूरत से अत्यन्त अधिक है जबकि बहुत से लोगों के पास जीवन की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ भी नहीं है। एक अणुव्रती श्रावक इस बाह्य परिग्रह का एकदेश त्याग तो करता ही है साथ ही आन्तरिक परिग्रह जैसे भावी महत्वाकांक्षा, अति–चाहत आदि का भी त्याग करता चला जाता है जो ईर्ष्या, वैमनस्य, संघर्ष व हताशा की जड़ है। यदि दुनियाँ इन अणुव्रतों का हृदय से पालन करने लग जाय तो फिर संसार में अणुबमों की जरूरत नहीं रहेगी। जैसे एक छोटी सी मछली पानी के प्रति स्वयं समर्पित करके पानी की धारा के विपरीत भी तैरती चली जाती है जबकि एक विशालकाय हाथी पानी की सीधी धार में भी समूचा बह जाता है। इसीलिए यदि हम स्वयं को सम्यक्त्व से परिपूर्ण वीतरागी धर्म के प्रति समर्पित कर देते हैं जो किसी जाति वर्ग से जुड़ा नहीं है, तो स्वयं और समाज दोनों का ही कल्याण कर सकते हैं। आज आरंभिक व्याख्यान देते हुए आर्यिकाश्री आर्षमति माताजी ने श्रावकों को शुद्धतापूर्ण तरीके भोजनादि तैयार करने, समता धारण करने तथा संतोष का अभ्यास करने हेतु प्रेरणा प्रदान की। मन पर जीत ही सच्ची जीत चातुर्मास दरम्यान गुजरात की राजधानी गांधीनगर में विराजित चर्याचक्रवर्ती, साधनाश्रेष्ठ वात्सल्यमूर्ति 108 आचार्य श्री सुनीलसागरजी की वाणी और 43 पिच्छी ससंघ की साधना से सिर्फ जैन समुदाय ही नहीं अपितु जैनोत्तर समुदाय भी महक रहा है। आचार्यश्री ने गांधीनगर दक्षिण से वर्तमान विधायक श्री शंभुजी ठाकोर एवं सेक्टर 21 पुलिस स्टेशन तथा पेथापुर पुलिस स्टेशन के अधिकारियों के प्रवचन सभा में आने पर सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जैन किसी जाति विशेष से जुड़ा धर्म नहीं है अपितु सभी के कल्याण का धर्म हैं। जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर प्रभु महावीर क्षत्रिय थे, राजकाज के समस्त सुख उनको उपलब्ध थे किन्तु उन्होंने आत्म साधना के लिए और विश्व को सच्चे आनंद का अनुभव कराने के लिए संयम, तप और

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