Book Title: Anuvrat Sadachar Aur Shakahar
Author(s): Lokesh Jain
Publisher: Prachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan

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Page 118
________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार परम उपकारी गुरुदेव कहते हैं कि सल्लेखना समाधिमरण में पूर्णरूप अहिंसाव्रत का पालन होता है जो आत्महत्या में कतई संभव नहीं है । समाधिमरण में व्यक्ति क्रोध, मान माया लोभ आदि कषायों को छोड़ता है, क्षमा भाव धारण करता है, वैर भाव छोड़ने की भावना भाता है इसलिए इसमें भावहिंसा होने की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती, 12 व्रतों के अतिचार नहीं लगते और 5 महाव्रत तथा 7 शीलव्रतों के साथ समाधिमरण करने से मोक्षरूपी लक्ष्मी अवश्य वरण करती है, चतुर्थ काल हो तो उसी भव से मोक्ष हो जाता है। नहीं तो उच्च स्वर्गों में देव अवश्य बनते हैं, लौकान्तिक देव भी बनते हैं और निकट भव में मोक्ष को प्राप्त होते हैं । इसीलिए हे भव्य जीवो! जीवन सुधारो श्रावकाचार से और मरण सुधारो समाधिमरण से । 108 51 प्राकृत भाषा के आगम ग्रंथो में की गई अहिंसा, सदाचार और शाकाहार की पहल राष्ट्र की सुख-शांति के लिए अनिवार्य प्राकृत भाषा पर त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में विशेष प्रवचन छोटी सी जिंदगी बड़े बड़े अरमान । पूरे हो ना पायेंगे, निकल जायेंगे प्राण । । प्राकृताचार्य श्री सुनीलसागरजी महाराज ने त्रि-दिवसीय राष्ट्रीय प्राकृत संगोष्ठी के समापन सत्र में प्राकृत ग्रंथों की उपादेयता के संदर्भ में कहा कि आचार्य कुन्दकुन्द तथा अनेक पूर्वाचार्यों के प्राकृत ग्रंथों में सार रूप में आत्मकल्याण हेतु एवं संयमी जीवन जीने हेतु अहिंसा, सदाचार और शाकाहार की जो पहल की गई है वह जीवन में उतारने, आत्मसात् करने योग्य है तथा पर्यावरण संतुलन, सर्व के कल्याण के लिए अनिवार्य है। हिंसात्मक साधनों और प्रवृत्तियों को प्रश्रय देकर किसी राष्ट्र का भला कदापि नहीं हो सकता। वैश्विक जीवन शैली का वर्तमान विकास का सिद्धांत Survival of Fittest अर्थात् जिसमें दम होगी वही जीयेगा आधुनिक युग में भौतिकवादिता का पूर्ण समर्थक होकर भी विश्व शांति की स्थापना में निष्फल सिद्ध हो रहा है। हर शेर के लिए एक सवा शेर तैयार बैठा है । कोई भी स्वयं को लंबे समय तक सुरक्षित भयमुक्त महसूस नहीं कर पाता है । जबकि भगवान महावीर का सिद्धांत Live and Let Live "जिओ और जीने दो" दया करुणा और मानवीयता का अटल प्रहरी बना हुआ है। इसकी शाश्वत उपयोगिता को किसी भी काल में चुनौती नहीं दी जा सकती। इसमें

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