Book Title: Anuvrat Sadachar Aur Shakahar
Author(s): Lokesh Jain
Publisher: Prachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan

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Page 129
________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार गुरुदेव ने चातुर्मास के पश्चात् अपने संघ के गिरनार विहार की बात करते हुए प्रसंगवश मुख्यमंत्रीजी से कहा कि हालांकि यह आपके राज्य की व्यवस्था का प्रश्न है तथापि सामाजिक सद्भाव के मद्देनजर गिरनार की वर्तमान समस्या का हल शोधना आवश्यक है तथा जिसे पारस्परिक समझ व संवाद के साथ आसानी से लाया जा सकता है। बशर्तें अहम् व कार्य करने की अनिच्छा शक्ति आड़े न आए। ज्ञातव्य है कि गिरनार से श्रीकृष्णजी के चचेरे भाई 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ गिरनार की 5वीं टोंक से मोक्ष पधारे। यह ऐतिहासिक तथ्य है फिर भी यह मुद्दा काफी समय से विवादों में घिरा हुआ है। इसका समाधान आना चाहिए। उन्होंने मुख्यमंत्री जी से कहा कि सर्वसम्मति से इस विवाद का सम्मानजनक हल संभव है । यह जरूरी है कि इस परम पावन तीर्थ पर सभी लोग प्रेम से सहिष्णुता से अपने भावों के अनुसार पर्वतराज की वंदना करें, ध्यान आराधना करें। वहाँ का वातावरण भयमुक्त हो हिसांदि घटनाएं न हो, वैर-वैमनस्यता का वातावरण न रहे और सभी इस स्थल पर अपनी अपनी धर्माराधना कर सकें। माननीय मुख्यमंत्री श्री विजयभाई रूपाणी जी ने आचार्य भगवन् से सहमत होते हुए आश्वासन दिया कि इस समस्या का शांतिपूर्ण व सम्मानजनक हल निकालने हेतु यथासंभव यथायोग्य प्रयास किए जायेंगे ताकि किसी भी समुदाय की धार्मिक भावनाऐं व आस्थाएं आहत न हों। समस्त जैन समुदाय ने करतल ध्वनि के साथ माननीय मुख्यमंत्री में विश्वास व्यक्त करते हुए उनका आभार व्यक्त किया । आचार्यश्री के गिरनार की तरफ विहार का यह दूसरा पड़ाव श्रीमद् राजचन्द्र आध्यात्मिक केन्द्र कोबा है जहाँ आनन्द के साथ अष्टान्हिका पर्व तो मनाया ही जा रहा है। यहाँ आचार्यश्री सुनीलसागरजी एवं आश्रम के संचालक प.पू. आत्मानन्दजी की पावन निश्रा में समस्त साधकों एवं धर्मानुरागी श्रावकों में आध्यात्मिक साधना का उत्कृष्ट वातावरण बना हुआ है जिसमें सुबह व दोपहर पश्चात् के प्रवचनों में पूर्वाचार्य आचार्यश्री कुन्द कुन्दजी की महत्वपूर्ण कल्याणकारी कृति समयसार पर चिन्तन, मनन, चर्चा व देशना की अविरल निर्मलधारा बह रही है। 1 57 जो पर को दुःख दे, सुख माने, उसे पतित मानो 119 धर्म अहिंसा परमो धर्म ही सच्चा जानो जो पर को दःख दे सख माने उसे पतित मानो ।। सज्जनो! अहिंसा ही परम धर्म है। जो धारण किया जाता है वह धर्म है, इसीलिए धर्म इस जीव का स्वभाव है। गर्भित वचन बोलने से, खोटे शब्द बोलने से, कषायसहित वचन बोलने से और अप्रिय वचन बोलने से जीव दुखी हो

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