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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
एक छोटा बच्चा जिसके मुँह में लड्डू रखा हुआ है उसकी माँ पूँछती है कि बेटा क्या तुमने लड्डू खाया? बेटा कहता है कि नहीं माँ अभी नहीं खाया । वैसे ही जिनके परिग्रह दिख रहा है और वे बोलें कि वह मेरा नहीं है। यह तो कोई बात नहीं हुई। इस भ्रमजाल से बाहर निकलने में बुद्धिमानी है।
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अपरिग्रहाणुव्रत के पालन का अर्थ है कि जितना जरूरी हो उतना ही परिग्रह रखें बाकी के संकल्प - विकल्प का मन वचन काय से त्याग करें। इससे अन्य अणुव्रतों का पालन में भी सहजता का अनुभव होने लगता है । इसीलिए भव्यजनो! यदि जीवन को सुखी बनाना है तो जीवन के हर पल में अणुव्रतों का पालन अवश्य करते रहो । हे आत्मार्थी सज्जनो! देखो, यदि कोई मेहमान घर पर आता है, बैठता है और उससे आप कुछ नहीं बोलते हैं तो वह अपने आप उठकर चला जाता है । उसी प्रकार जो कर्म आ रहे हैं उन्हें आने दो, उनकी ओर देखो मत तो वे कर्म अपने आप चला जायेगें। इस भेद विज्ञान को अपने मन में बिठालो उसमें उलझो मत, सुलझने के लिए पर्याय बनी हुई है ।
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अणुबम से नहीं, अणुव्रत से होगी विश्व शांति
परमपूज्य आचार्य भगवन् श्री सुनीलसागरजी महाराज ने विश्वशांति का गुरुमंत्र देते हुए कहा कि अणुबम बनाने से नहीं बल्कि देशवासियों को अणुव्रती बनाने से सुख, शांति व समृद्धि आयेगी । मकान की ऊँचाई बढ़ाने से कोई आदमी बड़ा नहीं हो जाता है, शरीर की ऊँचाई बढ़ा लेने से भी आदमी बड़ा नहीं होता है और न ही पैसे का ढेर लगा देने से तथा गाड़ी आदि खरीद लेने से आदमी ऊँचा होता है अपितु वह महान होता है अपने संस्कार से, सदाचार से और अपने सुविचार से |
सज्जनो! जीवन के विकास के लिए, संस्कृति के उत्थान के लिए तथा समाज के नैतिक विकास के लिए अहिंसा का पालन करना अनिवार्य है । आज दुनियाँ में परिग्रह की उपलब्धता को पुण्य का फल व संयोग मानते हैं । जिसके पास गाड़ी पैसा बंगला आदि बढ़ जाता है तो उसे बड़ा ही पुण्यात्मा कहा जाता है । परन्तु वास्तव में इस परिग्रह में आसक्ति से आरंभ आदि के कारण से दुर्गति का ही बंध होता है। यदि नेतागीरी करते करते, व्यापार की कुर्सी पर बैठे बैठे मर गए तो अच्छी गति का बंध नहीं होता इसलिए हर सद्ग्रहस्थ को चाहिए कि वह घर गृहस्थी की जिम्मेदारी पूरी करते हुए समय रहते सुपुत्रों पर इसकी जिम्मेदारी छोड़कर धर्मध्यान में लग जाना चाहिए। पहले के राजा महाराजा भी ऐसा ही करते थे, वे युवराज को गद्दी देकर स्वयं निवृत हो जाते थे और यदि वे घर में भी रहते थे तो भी वैरागी की तरह ही रहते थे। उनके जीवन से सीख