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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
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परम उपकारी आचार्य भगवन् चेतावनी एवं सीख देते हुए कहते हैं कि सत्य के द्वारा कमाई गई लक्ष्मी ही तुम्हारे पास टिक सकती है अनीति व अन्याय तथा दिन-रात झूठ बोलकर अर्जित की गई पूँजी कब हाथों से निकल जायेगी, पता भी नहीं चलेगा। आज सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक समस्याओं का एक मूल कारण लोगों में, युवाओं में सत्यनिष्ठा के अभाव का होना है।
___ सत्य धर्म का व्यावहारिक पक्ष समझाते हुए कृपालु आचार्यश्री कहते हैं कि जीवन में असत्य तो बोलना ही नहीं चाहिए किन्तु ऐसा सत्य बोलने से बचना चाहिए जिससे किसी व्यक्ति को कष्ट पहुँचता हो, उसके प्राण संकट में पड़ते हो, परिवार व समाज में टूटन आती हो, राष्ट्र की अस्मिता संकट में पड़ती हो। जैन कथानक में एक शिक्षाप्रद दृष्टांत आता है कि
एक मुनिराज कसाई के पूंछने पर मना कर देते हैं कि गाय इस तरफ से नहीं गई है ताकि उसे कसाई के हाथों मरने से बचाया जा सके। इसी प्रकार एक बार की बात कि बादशाह अकबर ने अपनी मुट्ठी में चिड़िया को पकड़ लिया और एक श्रावक श्रेष्ठी से पूंछा कि यह जिंदा है या मरी हुई। श्रेष्ठी जान लेता है कि यह चिड़िया जिंदा है किन्तु यदि मैं सत्य कह देता हूँ तो बादशाह अपनी बात सिद्ध करने के लिए इस चिडिया को मुठठी में दबाकर मार देगा। इसलिए वह कहता है कि यह मरी हुई है और तब बादशाह अपने को सही साबित करने के लिए उस चिड़िया को अपनी मुट्ठी से आजाद कर देता है और ऐसे असत्य से एक चिड़िया को जीवनदान मिल जाता है।
ऐसे ही कई सारे अवसर जीवन में आते हैं जहाँ हमें अपने विवेक का उपयोग करते हुए सत्य वचन की जगह अन्य के प्राणों को बचाना होता है। सत्य धर्म के पालन की सीख लेने वालों के लिए धर्मराज युधिष्ठर का एक प्रसंग भी प्रेरणास्पद है- जब वे गुरु द्रोणाचार्य द्वारा सिखाए गए– 'सत्यं वद' के पाठ को तीन दिन बाद भी याद करके नहीं सुना सके जबकि सभी राजकुमारों ने कभी का सुना दिया था। गुरुदेव के तमाचा मारने पर और यह पूंछने पर कि पाठ अभी तक याद क्यों नहीं हुआ?, धर्मराज युधिष्ठर ने बहुत ही मार्मिक उत्तर दिया कि गुरुदेव! पाठ के शब्द तो मुझे पहली बार में ही याद हो गए थे किन्तु मैं उसे अभी तक आचरण में उतार नहीं पाया था इसलिए मना करता रहा। हे भव्य जीवो! सत्य को आचरण में उतारने की क्रिया अनमोल तप है।
आज की प्रवचन सभा में गुजरात विधान सभा के उपदण्डक श्री आनंदभाई चौधरी तथा केशोद के विधायक श्री देवाभाई आचार्यश्री का आशीर्वाद लेने प्रवचन सभा में उपस्थित हुए। धर्मवृद्धि का आशीष देते हुए गुरुदेव ने कहा कि जीवन में हमेशा सत्य बोलो किन्तु दूसरों को कष्ट पहुँचाने वाला सत्य कभी मत बोलो। इस सत्य का आधार पारस्परिक विश्वास है जिससे जीवन की सभी व्यवस्थाएं संचालित होती हैं।