Book Title: Anuvrat Sadachar Aur Shakahar
Author(s): Lokesh Jain
Publisher: Prachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan

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Page 64
________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार कि प्रोषधोपवास में समस्त आरंभ का त्याग करते हुए, ममत्व व कषाय को छोड़ते हुए, जप तप और सामायिक के साथ करना चाहिए । 54 आर्यिका सुधर्ममती माताजी ने क्रोध का स्वभाव, क्रोध का कारण, क्रोध की परिणति तथा उससे दूर रहने के पुरुषार्थ पर हृहयस्पर्शी संबोधन देते हुए कहा कि जहाँ अपनी कोई अपेक्षाएं नहीं रहती वहाँ हम सहज ही व्यवहार करते हैं किन्तु जब अपेक्षा की उपेक्षा होते ही क्रोध आने लगता है । क्रोध कहीं बाहर से नहीं आता वह अपने अंदर के विकारों से प्रकट होता है । निमित्तों को हम गुस्से का कारण मानते हैं तो बताओ क्या कभी पार्श्व प्रभु ने क्रोध किया? नहीं न उन्होंने तो क्रोध पर अप्रतिम विजय प्राप्त कर सकल कर्मों का नाश कर लिया। क्रोध में हम संसार बढ़ाते चले जाते हैं। भ्रम तो तब होता है जब हम क्रोध को ही पावर, शक्ति ताकत प्रभाव मान लेते हैं। गुस्सा करने से ही बालक अथवा अनुयायी काम करते हैं ऐसा भ्रम पाल बैठते हैं । अरे! क्या आपने कभी सोचा कि आप स्वयं प्यार से कहने पर काम करना पसंद करते हैं या गुस्से से कहने पर ? यदि किसी को मनवाने का तरीका क्रोध ही होता तो क्या आचार्य भगवन् यही तरीका नहीं अपनाते ? वो क्यों हमें वात्सल्य से समझाते ? नहीं गुस्सा हमें छोड़ना ही पड़ेगा। कोई यह भी कह सकता है कि जब निमित्त सामने आ जाता है तो गुस्सा रोक नहीं पाते। गलत है बंधुओ तुम्हारी यह धारणा । अरे! बताओ यदि तुम्हारे घर के सदस्य बीमार पड़ जाएं तो क्या तुम भी बिस्तर पकड़ कर बैठ जाओगे? नहीं न । तो फिर क्रोध करने वाले के सामने उसी के समान अथवा उससे बढ़चढ़ कर प्रतिउत्तर क्यों देते हो? उस समय के लिए शांत रहना सीखो। हर रोज सुबह इस तरह के निर्णय करो, संकल्प लो कि कम से कम आज के दिन हम किसी भी परिस्थिति के आने पर भी क्रोध नहीं करेंगे। आचार्य भगवन् कहते हैं कि फिर देखो कि तुम्हारे जीवन में क्या परिवर्तन आता है। तुम्हारी दशा-दिशा दोनों बदल जायेंगी, जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा और कषाय मंद पड़ते पड़ते मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होगा। हे भव्य जीवों ! चैतन्य आत्मा को निज स्वभाव में रमाना सीखो अणुव्रत, गुणव्रतों और शिक्षाव्रतों को धारण करो तथा अनर्थदण्ड से दूर रहो। इसी मंगल कामना के साथ आदि विधाता, आदि तीर्थंकर, महादेव आदिनाथ भगवान की जय । करुणामूर्ति पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री सुनील सागर जी ने कराया "धर्म की शरण प्राणिमात्र के लिए" का साक्षात्कार - सांयकाल अद्भुत नजारा जब आचार्य भगवन् ससंघ स्वाध्याय कर रहे थे तभी एक मूक बछड़ा दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया । वात्सल्यमूर्ति करुणा के सागर आचार्य सुनील सागरजी महाराज ने ज्योंही उस पर पिच्छी से आशीर्वाद दिया वह निरीह आँखों से गद्गद् होता हुआ वहाँ से अपने गंतव्य की ओर शांति से चला गया। गुरुदेव

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