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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
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स्थान आपका अपना घर है यदि वह दूर से दिखाई नहीं देता तो तिराहे आदि पर जा सकते हैं जहाँ पर आने वाले अतिथि की नजर आप पर पड़ सके। अतिथि के मिलने पर उसका विनम्रता से विधि पूर्वक पड़गाहन करें। ऐसे तो त्यागी साधु मुनि आदि को ही श्रेष्ठ पात्र माना गया है किन्तु भूखे-प्यासे व्यक्ति को करुणा भाव से भोजन कराना भी कम पुण्य का काम नहीं। साधु को नवधा भक्ति से आहार देना चाहिए अर्थात् आदर के साथ पड़गाहन, मन-वचन-काय शुद्धि की प्रतिबद्धता, उच्च स्थान देना, पाद प्रक्षालन, अर्चना, सिर झुकाकर नमन, फिर से मन वचन काय की शुद्धि तथा एषणा (आहार) शुद्धि, पधारे हुए अतिथि को मुदित भाव से भोजन कराना, ईर्ष्या नहीं रखना, नियत अतिथि के न आने पर मन में विषाद नहीं करना आदि को इसमें शामिल किया जाता है। दान में अहंकार का भाव कदापि नहीं होना चाहिए।
श्रावक के मूल गुणों में दया मुख्य है। एक पत्रकार को ज्ञात हुआ कि अमुक गांव में कोई भूखा नहीं सोता है। जब वह इसकी जाँच पड़ताल करने गया तो उसने पाया कि गांव में चाय की दुकान, होटल है। वहाँ एक आदमी आता है वह अकेला है किन्तु होटल वाले से दो चाय और दो प्लेट नाश्ता खरीदता है। एक प्टेल एवं एक चाय खरीदकर वह पास में जरूरतमंद के लिए बने चबूतरे पर रखकर आता है फिर वापस आकर अपना नाश्ता करता है। इतने में उस चबूतरे रखे हुए नाश्ते को एक जरूरतमंद व्यक्ति ले जाता है और अपना पेट भर लेता है। जब यह क्रम गांववालों में अनवरत चला आ रहा है तब पत्रकार ने आखिर इसका राज पूँछा। लोगों ने बताया कि हमारे गाँव की प्रथा है कि जिसके पास अपनी जरूरत से ज्यादा है वह अतिरिक्त भाग को जरूरतमंद के लिए रखकर आ जाता है इसलिए हमारे गांव में कभी कोई भूखा नहीं सोता। यदि सर्वत्र इसी तरह की पवित्र भावना व्याप्त हो जाए तो धरती ही स्वर्ग बन जाए।
आज हमारे देश में इसी प्रकार की सेवा भावना की नितान्त आवश्यकता है ताकि वृद्धाश्रमों और अनाथाश्रमों की आवश्यकता ही न पड़े। अगर ये हो भी तो हमारा सहयोग ऐसा हो कि ये उन बुजुर्गों व निरीहों का सहारा बनें जो निःसहाय हैं जिनका कोई नहीं है। वे लोग समझें जो अपने बूढ़े माँ-बाप को घर से बाहर भटकने के लिए छोड़ देते हैं शायद वो नहीं जानते कि घर के आंगन में लगा हुआ पेड़ जो फल भले ही न दे किन्तु अंत तक पीढ़ियों को शीतल छाया अवश्य देता रहेगा। कसाई तो एक बार ही किसी प्राणी के प्राण हरण करता है किन्तु माँ बाप की परवाह न करने वाले ऐसे निकृ ष्ट लोग तिल तिलकर उन्हें मारते रहते हैं। लोग कुत्ते को साथ रख सकते हैं किन्तु बूढ़े मां-बाप की सेवा-सुश्रषा नहीं कर सकते। यदि ऐसे लोग पूजा दान आदि भी करते हों तो वह भी निरर्थक है। मां-बाप को भी चाहिए कि वे समता भाव रखें, प्राप्य में संतोष रखें। इस प्रकार जब दोनों ओर से संवेदना विकसित होगी तो इस समस्या का व्यवहारिक समाधान निकल आयेगा। वृद्धावस्था में