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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल। ___ जो लोग भारत को जानते हैं वे गांधी को अवश्य जानते हैं और जो गांधी को जानते हैं वे प्रभु महावीर की अडिग अहिंसा को जानते हैं। इन मूल्यों को श्री राम और कृष्ण ने भी अपनाया लेकिन महावीर स्वामीजी ने पूरे दमखम के साथ समाज की विकृतियों के सामने अहिंसा के करुणामयी स्वरूप को रखा। अहिंसा देश की संस्कृति है किसी व्यक्ति की बपौती नहीं है। हमने हमेशा अहिंसा का जीवन जिया है। जैनों का प्रतीक "अहिंसा परमो धर्मः” महाभारत का सूत्र से लिया गया है।
बड़े ही दुख की बात है कि गांधीजी ने जिस देश की आजादी के लिए अहिंसा का मार्ग अपनाकर अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया आज उस देश में बूचड़खाने बढ़ते जा रहे हैं। पंचेन्द्रिय प्राणियों का निर्ममता से कत्ल किया जा रहा है जो कदापि सही नहीं है भले ही उसके लिए कोई भी तर्क क्यों न रखे जाएं। इस धरती पर सभी जीवों को जीने का समान अधिकार है। भगवान महावीर ने कहा कि व्यापार आदि के लिए मर्यादित हिंसा तो हो सकती है किन्तु संकल्पी हिंसा नहीं हो सकती, किसी जीव की हिंसा नहीं हो सकती। हिंसा का व्यापार किंचित भी उचित नहीं। लाल बहादुर शास्त्री एक ईमानदार व कर्मठ पूर्व प्रधानमंत्री जो जिंदगीभर सादगी का दामन थामे रहा आज उनका भी जन्म दिन है। उन्होंने अपनी देश की गरिमामयी संस्कृति के अनुरूप जय जवान जय किसान का नारा दिया था। किसान हमारे अन्नदाता है जो देश की अंदर से रक्षा करता है और जवान हमारी सीमाओं की रक्षा करता है। देश में उनके कल्याण के लिए हर संभव प्रयास किए जाने ही चाहिए। गांधीजी के यदि आर्थिक स्वराज की बात कहें तो देश का विकास तभी संभव है जब अहिंसक स्वदेशी उद्योगों का विकास हो लोग विदेशी वस्तुओं का उपयोग करने से बचें। इससे हमारे देश की पूँजी हमारे देश में रहेगी और उसका सच्चे देश हित में उपयोग हो सकेगा।
राष्ट्रपिता गांधीजी ने संत का रूप अख्तियार किया। वे ऐसे व्यक्तित्व हैं जो संत बने बिना, संत कहलाने वाले बने। यदि जैन धर्म शिक्षा के अनुरूप उनके जीवन को देखें तो वे अपने शरीर पर दो-ढाई वस्त्र ही रखते थे जो वस्तुतः क्षुल्लक त्यागी व्रती की चर्या है। आहार आदि में भी उनका संयम अनुकरणीय कहा जा सकता है। उन्होंने कभी भी कुदरत से भी अपनी मर्यादित जरूरतों से अधिक ग्रहण करने का प्रयास नहीं किया, कभी उन पर मालिकी का हक जाहिर नहीं किया, सभी जीव आत्माओं को समान समझा। यहाँ तक कि जिस व्यक्ति ने उन्हें गोली मारी उसके प्रति भी दुर्भाव उनके मन में नहीं आए परिणाम कलुषित नहीं हुए और मुँह से निकला हे राम। यह जैन संस्कृति में भावविशुद्धि के साथ देह त्याग अर्थात्