Book Title: Anuvrat Sadachar Aur Shakahar
Author(s): Lokesh Jain
Publisher: Prachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan

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Page 110
________________ 100 अणुव्रत सदाचार और शाकाहार बन पाते हैं जो बिना किसी भेदभाव के सभी का भला चाहते हैं और शरणागत को सही रास्ते पर ले जाते हैं। सच्चे देव शास्त्र गुरु की शरण में जाने से भावों की शुद्धता बनती है। माना कि देवी-देवताओं के पास काफी शक्तियां हैं जिनकी कृपा से सांसारिक सुखों की पूर्ति के वरदान मिलते हैं। भगवान नेमिनाथ की यक्षणी अम्बिका देवी जिनकी शक्तियों का बखान हरिवंश पुराण में किया गया है। पृथ्वी को उलट-पलट करने तक की सामर्थ्य शक्ति होने के बाबजूद इन देवी-देवताओं की तुलना भगवान से नहीं की जा सकती। मात्र शक्ति के कारण और सांसारिक सुखों की अभिलाषा पूर्ण होने से इन्हें प्रभु समझ लेने की भूल कदापि नहीं करनी चाहिए, यह मिथ्यात्व है क्योंकि जब तक अष्टकर्मों का नाश नहीं किया जाता तब तक कोई भी आत्मा सिद्धालय में अपना स्थान नहीं बना सकती। सिद्धशिला में स्थिति परमशुद्धात्मा के अतिरिक्त अन्य कोई आत्मा कितनी ही करिश्माई क्यों न हो, भगवान नहीं हो सकती। हे भव्य जीवो! भाव विशुद्धि ही सिद्धालय का रास्ता बन कर हमारे सत-संकल्पों को पूर्ण कर सकती है। आज के मंगलमय दिवस पर यही कामना कि सभी लोग आपस में प्रेम करते हुए मैत्रीयता का भाव बढ़ाएं और जीवन में सकारात्मक विचार व तदनुरूप पुरुषार्थ के द्वारा सर्वोत्तम व श्रेष्ठ मुकाम पर पहुंचे। 47 सेवा और प्रेम मोक्ष का मार्ग तथा घृणा व कषाय पतन का धाम सेवा और प्रेम के रास्ते जब चलते हैं, तो परमात्मा की उपलब्धि होती है। घृणा के रास्ते जब चलते हैं, तो पतन की उपलब्धि होती है।। आचार्य भगवन् श्री सुनीलसागरजी महाराज ने सेवा व प्रेम के मार्ग की महिमा का बखान करते हुए कहा कि सेवा व प्रेम के रास्ते पर चलने से आत्मा के गुण प्रकट होते हैं जो परमात्मा स्वरूप की उपलब्धि कराते हैं। जबकि उसके विपरीत कषायजनित घृणा आदि परिणाम आत्मा के गुणों को ढंक देते है, उसके मूल स्वरूप को प्रकट नहीं होने देते और आत्मा के पतन का कारण बनते हैं। क्षमा, विनय आदि गण आत्मा का निज स्वरूप हैं। इन गुणों के श्रेष्ठ परिणामों से स्वर्ग तो मिलता ही है और परिणामों की विशुद्धि बढाने वाले होने से परमात्मा स्वरूप की उपलब्धि भी कराते हैं। चारित्र मोहनीय कर्म के उदय से सम्यक्त्व चारित्र का घात होता है। यदि चर्या में चारित्र का पालन तो दिख रहा है किन्तु मन में कषाय है तो भी चारित्र का पतन होता है। सही मायनो में व्रती बनने के लिए और चारित्र को धारण

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