Book Title: Anuvrat Sadachar Aur Shakahar
Author(s): Lokesh Jain
Publisher: Prachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 101
________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार 91 सावधानी रखते हैं कि जीवों की हिंसा न हो। आचार्य अमृतचंद्राचार्यजी कहते हैं कि मूलाचार जैसे आगम ग्रंथ में मुनियों के लिए तो यह आचरण बताया ही गया है किन्तु श्रावक भी इसका यथाशक्ति यथासंभव पालन कर पापों से बच सकते हैं। समिति का अर्थ ही है सावधानी या यत्नपूर्वक प्रवृत्ति। पूर्वाचार्यजी पुन: निर्देशित करते हैं कि चलते फिरते हो तो सम्यक ढंग से चलो। कूदते–फांदते चलने से कितने ही जीवों का घात होता है। गाड़ी चलाते समय भी कितने जीवों का घात हो जाता है। श्रावक कहते है कि ऐसे में हम ईर्या समिति का पालन कैसे करें? गुरुदेव कहते हैं कि बिना होश के, अधिक तेजी से गाडी भगाने से, असमय में तथा बिन प्रयोजन गाडी चलाने से हम असावधानी के कारण जीवों का घात करके पाप बंध कर लेते हैं। जिसके चलते कई बार जहाँ हमें पहुँचना होता है वहाँ की तो छोड़ो किन्तु जहाँ 50 साल बाद पहुंचने वाला होता है (मृत्यु के पास) वहाँ समय से पहले पहुँच चुके होते हैं। यदि हम आंशिक रूप से ईर्या समिति का पालन करें, दिन में सूर्य निकलने के पश्चात् चलें तो अपेक्षाकृत रूप से जीवों का घात कम होगा और सभी जीवों के प्रति करूणा व दया की संवेदनाएं हमारे मन में बनी रहेंगी। आपके वाहन का शिकार होने वाले पशु-पक्षिओं के स्वजनों को भी अपनों के खोने का अहसास होता है और वे कई रूपों में इसका प्रतिउत्तर भी देते हैं। ज्ञानियो! आप कहोगे कि हाइवे पर कम गति से चलना संभव नहीं होता तो कम से कम होश में तो चलो ताकि अनावश्यक रूप से असावधानीवश जीवों का घात न हो। इसे सम्यक् गमना-गमन कहा है। इसी तरह बोलने का तरीका भी सम्यक् होना चाहिए। किसी के प्रति खराब, कठोर, असत्य वचन नहीं बोलने चाहिए। बड़ों के साथ बड़ों की तरह आदरपूर्वक बोलना ही सम्यक् भाषा है। उसे भाषा समिति कहा है। लोग कहते हैं कि आज झूठ के बिना काम नहीं चलता लेकिन सभी जानते हैं कि एक झूठ को छिपाने के लिए हजार झूठ बोलने पड़ते हैं और अंत में वह झूठ पकड़ा ही जाता है तब शर्मिंदगी उठानी पड़ती है ऐसे में सत्य के आचरण से गुरेज क्यो? गांधीजी ने अपने जीवन में सत्य को अपना कर सिद्ध कर दिया कि सत्य सरल है इसके पालन में किसी भी प्रकार की कठिनाई नहीं है। इसी प्रकार तीसरी एषणा समिति के संदर्भ में गुरुवर कहते हैं कि खानपान में शुद्धि की भी नितांत अवश्यकता है। कहते भी हैं जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन, जैसा पीओ पानी वैसी बोलो वाणी। आज बाजार में जो चीजें बन रही है, जो खानपान की वस्तुएं विदेशी कंपनियां बना रही हैं उनमें न शुद्धता है न पवित्रता और न ही आरोग्य की गारंटी। मांसाहार की मिलावट संभावना, अभक्ष्य की संभावना को भी नकारा नहीं जा सकता। रस में विष मिलाकर बिकने वाली खूबसूरत पेकिंग में मिलने वाली, सहजता से

Loading...

Page Navigation
1 ... 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134