Book Title: Anuvrat Sadachar Aur Shakahar
Author(s): Lokesh Jain
Publisher: Prachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan

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Page 106
________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार आज सन्मति समवशरण में आचार्यश्री के दर्शनार्थ पधारे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी श्री अमृतभाई पटेल ने गुरुदेव का आशीर्वाद लिया तथा सन्मति एक्सप्रेस पत्रिका का विमोचन किया। आज के दिन मुनिश्री आर्जवनंदी तथा क्षुल्लकश्री विजयंत सागरजी का केशलोंच सम्पन्न हुआ । मुनिचर्या के आवश्यक कार्यों में केशलोंच प्रमुख प्रवृति है जो शरीर से ममत्व हटाने का प्रतीक है जिसे मुनिगण श्रावक समाज के समक्ष इस मार्ग पर बढ़ने हेतु आदर्श के रूप में प्रस्तुत करते हैं । इसी मंगलभावना के साथ। 96 45 मन में संवेदना का दीप जलाकर समाज की अमावस को पूर्णिमा में बदलें भगवान् महावीर के निर्वाण महोत्सव पर मन को मुदित करने वाला निर्वाण लाडू सन्मति समवशरण में चढ़ाया गया । निर्वाण का अर्थ है शूल रहित अवस्था अर्थात् जो कर्मरूपी वाणों की पीड़ा से मुक्त है, शाश्वत सुख का धाम है उसकी कामना करने भावना भाने का महोत्सव है यह दीपावली का त्योहार । परम पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री सुनील सागरजी महाराज ने कहा कि हम परंपरागत रूप से दीपक जलाते आए हैं क्या हमने कभी सोचा है कि यह दीप हमसे क्या कहना चाहता है? दीपावली पर्व को समाज की जड़ता दूर करने से जोड़कर नूतन दृष्टिकोण सामने रखते हुए कहा कि दीपावली तो एक अमावस को प्रकाशमान करता है ज्ञान और प्रकाश के प्रतीक रूप हम प्राणिमात्र के प्रति संवेदनशील बनें तो मानवता खिल उठेगी । आठों कर्म वाणों का नाश कर प्रभु महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए । उन्होंने अपने केवलज्ञान रूपी प्रकाश और मोक्षलक्ष्मी की आभा से कार्तिक की घोर अमावस को भी पूनम बना दिया। हम भी शुद्धात्मा को जानें, विषयासक्ति को त्यागें और आत्मा से परमात्मा बनने का पुरुषार्थ करें। जो आज तुम्हारा वर्तमान है वह कभी वीर प्रभु का भूतकाल था जिसे उन्होंने अपने सम्यक् पुरुषार्थ से परम शुद्धात्मा बना लिया। इस दुनियाँ में आपको कुछ बनने से कोई भी रोक सकता है लेकिन भगवान बनने से कोई नहीं रोक सकता यदि तुम चाहो तो। ज्ञानी अनासक्ति से ममत्व को हटाता है, शुभाशुभ के संयोग से भी दूर रहता है क्योंकि अशुभ तो खराब है ही किन्तु शुभ की मिठास भी जीव के लिए अधिक लाभदायक नहीं है । भेदज्ञान को धारण करके ही कर्मों का समूल नाश किया जा सकता है। पंचकल्याणक

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